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#JaunpurLive : बरस क्यों न जाते!



घटाओं  के बादल  बरस क्यों न जाते,
नदी प्यास की तू  बुझा  क्यों न जाते।
तप रही ये धरा , तप  रही हैं  फिजाएँ,
बारिश  से सूरत  सजा  क्यों  न जाते।
परिंदों की  देखो! हलक  फट रही  है,
उखड़ती दमों  को बचा  क्यों न जाते।
किसानों  की  आँखें  तुझपे  टिकी  हैं,
चिंता लकीरों  की  मिटा क्यों न जाते।
कलियों की हालत भी  अच्छी नहीं है,
मरने  से पहले  क्यों दवा  दे न  जाते।
धड़कता नहीं दिल, सुलग अब रहा है,
हक़ का  समंदर  पहना क्यों  न जाते।
दिखता   यहाँ   से  तू  जैसे   फरिश्ता,
ये कागज की कश्ती डुबो क्यों न जाते।
नहीं  तन  पे  कोई  उन  पेड़ों  पे  पत्ती,
हरियाली की चादर ओढ़ा क्यों न जाते।
कोयल भी  कुहके, बुलबुल  भी चहके,
सिसकते उन होंठों को हँसा क्यों न जाते।
सजदा   करेगी    ये    कायनात     तेरी,
उदासी  जहां  की  मिटा  क्यों  न  जाते।

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