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#JaunpurLive : आतंकवाद, महामारी और जलवायु परिवर्तन मुद्दों के समाधान में वैश्विक साझेदारी तात्कालिक ज़रूरी

#JaunpurLive : आतंकवाद, महामारी और जलवायु परिवर्तन मुद्दों के समाधान में वैश्विक साझेदारी तात्कालिक ज़रूरी


मानवीय स्वास्थ्य और कल्याण के लिए वैश्विक एकता व साझेदारी के लिए आगे आना प्रथम मानवता धर्म - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारत सहित वैश्विक रूप से पिछले कुछ दशकों से पूरी दुनिया बुनियादी रूप से बदल सी गई है।...साथियों बात अगर हम वैश्विक स्तर पर इस बदलाव की करें तो वैश्विक व्यवस्था को आकार देने वाला संरचनात्मक परिवर्तन मुख्य रूप से सत्ता के आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और विकास में बदलाव का परिणाम है। आज वैश्विक डिजिटलाइजेशन युग में हर तबके और स्तर के मानव की बुद्धि में विकास हुआ है। उनके रहन सहन, सोच, खानपान, जीवन शैली, में दशकों पूर्व की स्थिति में विस्तार और विकास हुआ है। जिसमें मानवीय बुद्धि में, मैं - मेरी प्रतिभा, और मेरा नेतृत्व सर्वोपर, विस्तार वादी नीति, विश्व का राजा बनने की चाहना इत्यादि प्रकार की सोच का विस्तार हुआ है, जिसका विपरीत प्रभाव वैश्विक स्तर पर भारत सहित अनेक देशों पर हुआ है।...साथियों बात अगर हम इस वैचारिक विस्तार से उत्पन्न दुष्प्रभावों की करें तो इसमें मुख्य रूप से आतंकवाद और सहायक रूप से तथा कथित कोरोना महामारी जिसका मानव मेड होने का आरोप एक देश पर लगा है और जलवायु परिवर्तन इन तीनों स्थितियों का मुकाबला किसी एक दो देश नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर सभी देशों को मिलकर सकारात्मक रूप से करना होगा और ईमानदारी से अपनी साझेदारी को क्रियान्वयन करने का भरोसा दिलाना होगा।...साथियों बात अगर हम आतंकवाद की करें तो पूरा विश्व इससे जूझ रहा है अफगानिस्तान, सीरिया की हालत हम देख रहे हैं। भारत भी पड़ोसी मुल्क और विस्तार वादी नीति वाले मुल्क से कम परेशान नहीं है। इससे निपटने के लिए सबको वैश्विक रूप से एक साथ आगे आना होगा। आतंकवाद के संकट का मुकाबला करने तथा बुनियादी ढांचे के पारदर्शी विकास के जरिए क्षेत्रीय आर्थिक संपर्क का समर्थन करने के लिए सभको एकजुट होना होगा। सभी देशों को अन्य बातों के साथ साथ आतंकवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाहों तथा आतंकी वित्तपोषण के विरोध और हमारे निकट पड़ोस में मौजूद आतंकी गुटों सहित अन्य आतंकी समूहों के खतरों के खिलाफ सहयोग को प्रगाढ़ बनाकर आतंकवाद के वैश्विक संकट को दूर करने के लिए एकजुट होना होगा।...साथियों बात अगर हम कोरोना महामारी की करें तो, कोविड-19 महामारी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की सबसे भयावह घटना है। इसलिए यह अपरिहार्य है कि महामारी के बाद के युग में हम एक अलग दुनिया का अनुभव करेंगे। हम अपने दैनिक जीवन में आभासी होने की नई वास्तविकता का सामना करने की कोशिश कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर,इसने राष्ट्रों की कमजोरियों को उजागर किया है और हमें अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के अभ्यास की वास्तविक अभिव्यक्ति दिखाई है। जहाँ सहयोग करने का इरादा मजबूत है, वहीं रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखने की आवश्यकता और भी अधिक है। पिछले कुछ महीनों में, घरेलू स्थिति से निपटने का प्रयास सबसे पहले किया गया है और उसके बाद, सहयोग करने के तरीकों की तलाश की गई है। भारत ने महामारी को लेकर एक समन्वित प्रतिक्रिया विकसित करने के लिए वैश्विक बातचीत शुरू करने और उसे प्रोत्साहित करने में अग्रणी भूमिका निभाई है। इसके अलावा, वसुधैव कुटुम्बकम (समस्त विश्व एक परिवार है) की शिक्षा पर चलते हुए, भारत ने अपनी घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करते हुए भी आवश्यक दवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करके वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमने 150 से अधिक देशों में आवश्यक दवाओं परीक्षण किट, सुरक्षा गियर आदि के रूप में मेडिकल आपूर्ति की है, तथा 80 से अधिक देशों को अनुदान के तहत चिकित्सा सहायता प्रदान की हैं। परिणामतः दूसरी लहर में पूरे विश्व ने भी भारतको भरपूर सहयोग और सहायता की गई...। साथियों बात अगर हम जलवायु परिवर्तन की करें तो एशिया - प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र के लिए एक संयुक्त रणनीतिक दृष्टिकोण की रूपरेखा बनाना जिसमें सभी पक्षों से आह्वान करना कि वे धमकी और बल प्रयोग से बचें तथा समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र संधि सहित पूरे विश्व द्वारा मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के अनुसार शांतिपूर्ण तरीकों से क्षेत्रीय एवं समुद्री विवादों का समाधान करने का संकल्प लें। 28 जुलाई 2021 को भारत और अमेरिकी विदेश मंत्रियों की बैठक में अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि इसके लिए, भारत और अमेरिका पूरे क्षेत्र में नौवहन, ओवर फ्लाइट और वाणिज्य की स्वतंत्रता का सम्मान करने और क्षेत्रीय और समुद्री विवादों को शांतिपूर्वक और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार हल करने की आवश्यकता का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।...साथियों बात अगर हम तीनों मुद्दों के समाधान में वैश्विक साझेदारी की करें तो, वैश्वीकरण की अवधारणा को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर ज़ोर देना होगा। क्योंकि इसे कुछ लोगों के हितों द्वारा परिभाषित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जो मौटे तौर पर इस प्रक्रिया को वित्तीय, व्यापार और यात्रा के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं। हमारे सामने आतंकवाद,महामारी और जलवायु परिवर्तन जैसी असल चुनौतियां हैं। ये ऐसे मुद्दे हैं जो वास्तव में बहुपक्षवाद की गंभीरता का परीक्षण करेंगे। बहुपक्षवाद के लिए एक नए, समावेशी और गैर-लेन-देन वाले दृष्टिकोण का आह्वान करते हुए हमें अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली को आधुनिक बनाने की जरूरत है, क्रमशः आगे बढ़ना होगा, प्रत्येक इकाई को इस दौर के लिए प्रासंगिक बनाना होगा जिसमें हम रहते हैं न कि जब इसे बनाया गया था। इसके लिए सदस्यता और नियंत्रण की संरचनाओं को फिर से देखना ज़रूरी है, परिचालन सिद्धांतों और नियमों को फिर से उन्मुख करना और बहुपक्षीयता के प्रमुख स्तंभों के आउटसोर्सिंग चैनलों का पुनर्निर्माण करना आवश्यक है। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करेंगेतो हमें महसूस होगाकि आतंकवाद, महामारी और जलवायु परिवर्तन मुद्दों के समाधानमें वैश्विक साझेदारी तात्कालिक ज़रूरी है जोकि मानवीय स्वास्थ्य और कल्याण के लिए वैश्विक एकता व साझेदारी के लिए आगे आना प्रथम मानवता धर्म है।
-संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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