बुलाते हैं नदी, तालाब आ जाइए,
मांग सूनी नदी की भर जाइए।
सूख चुके हैं सारे डैम कब के,
उखड़ती साँसों को बढ़ा जाइए।
तेरे आसरे इनकी जिंदगी टिकी,
मोहब्बत की धारा बहा जाइए।
तेरे रहते क्यों तरसें ये जड़ - चेतन,
इनके जख्मों पे मरहम लगा जाइए।
रखते हैं हमदर्दी तुझसे बहुत,
आशाओं का दीपक जला जाइए।
हार जाने का हौसला ये पाले नहीं,
इनके हक़ का समंदर लुटा जाइए।
हम सब हैं देख तेरी ही संतानें,
तमन्नाओं की दुल्हन सजा जाइए।
खिलने से पहले न कुम्हलायें कलियाँ,
इनके हाथों में मेंहदी लगा जाइए।
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