नया सबेरा नेटवर्क
घर -आँगन मैं आती चिड़िया,
चीं -चूँ करती रहती चिड़िया।
पंख फैलाकर फुर्र-फुर्र उड़ती,
दाना अपना चुगती चिड़िया।
बड़े सबेरे मेरी मुंडेर पर,
आकर मुझे जगाती चिड़िया।
तिनका-तिनका जोड़-जोड़कर,
अपना नीड़ बनाती चिड़िया।
लाल, हरी, भूरी, मटमैली,
सबके मन को भाती चिड़िया।
कच्चे घर अब नहीं रहे,
भूल रही नभ उड़ना चिड़िया।
अपने छोटे से घर में वो,
बड़े मजे से रहती चिड़िया।
बच्चे उसके चूँ -चूँ करते,
फूला नहीं समाती चिड़िया।
हुए प्रदूषण के दाँत नुकीले,
उखड़ी-उखड़ी रहती चिड़िया।
खरीद-फरोख्त जो उनकी करते,
उनसे निशि-दिन डरती चिड़िया।
लोग बढ़ाएँ फिर हरियाली,
चिंता मुक्त रहेगी चिड़िया।
मत छीनों नभ कोई उसका,
ऊँची उड़ान भरे फिर चिड़िया।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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