नया सबेरा नेटवर्क
तुझे ढूँढ रहा बचपन,
तुझे ढूँढ रही मस्ती।
कोई लाके मुझे दे दो,
मेरे गाँव की वो कश्ती।
बहकी -बहकी राहें,
वो कलियों की बाँहें।
लौटा दे कोई बचपन,
लौटा दे मेरा सावन।
वो फूल से भी नाजुक,
वो बच्चों की बस्ती।
कोई लाके मुझे दे दो,
मेरे गाँव की वो कश्ती।
वो बचपन के लम्हें,
जीवन के खजाने थे।
कब हार के फिर जीते,
वो दिन अनजाने थे।
वो धूल भरी सड़कें,
मेरे होंठों पे सोती।
कोई लाके मुझे दे दो,
मेरे गाँव की वो कश्ती।
वो माटी की खुशबू,
वो फागुन की होली।
जो बंद है मुट्ठी में,
वो खुशियों की झोली।
जो गाती माँ लोरी,
वो थी कितनी सस्ती।
कोई लाके मुझे दे दो,
मेरे गाँव की वो कश्ती।
गुम हो चुका वो मौसम,
ठग ली मुझे जवानी।
तुतलाती भाषा वो,
लौटा दे मेरी कहानी।
उन खेल -खिलौना की,
है कितनी बड़ी हस्ती।
कोई लाके मुझे दे दो,
मेरे गाँव की वो कश्ती।
तुझे ढूँढ रहा बचपन,
तुझे ढूँढ रही मस्ती।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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