नया सबेरा नेटवर्क
ये दुनिया यूँ ही चलती रहे,
अमन की कलियाँ खिलती रहें।
सीने में न पनपे कहीं दुश्मनी,
मोहब्बत की हवाएँ चलती रहें।
खून से न रंगों इस धरती को,
दरो- दीवार सदा हँसती रहे।
अमन के झोंके से बहे खुशबू,
हरेक घरों को वो मिलती रहे।
चुपके से चुरा फ़िज़ा का हुस्न,
फूलों की बातें चलती रहे।
कुदरत की धड़कन से गूँजे धरा,
वादी में केसर महकती रहे।
मरमरी ख्वाब पले हरेक मन में,
सोये तारों की खनक उठती रहे।
मुँह फेरकर जीने से क्या फायदा,
तमन्नाओं की सेज सजती रहे।
रोग, सोग से बची कहाँ दुनिया,
मोहब्बत की दरिया बहती रहे।
सूखे कहीं न प्यार का गुलिस्तां,
नग्मों की शमा जलती रहे।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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