सच्चाई की राह, सुखद जीवन के लिए विनियोग - झूठ का गंतव्य दुखी जीवन की चरम सीमा - एड किशन भावनानी
नया सबेरा नेटवर्क
गोंदिया - भारत अपनी संस्कृति, आध्यात्मिकता, अहिंसा धर्मनिरपेक्षता,परमो धर्मा और सच्चाई की मूरत राजा हरिश्चंद्र इत्यादि अनेकों विशेषताओं के लिए विश्व प्रसिद्ध है।...साथिया बात अगर हम सच्चाई की साक्षात मूरत राजा हरिश्चंद्र की करें तो, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र सदैव सत्य बोलते थे। वह अपने सत्य और न्याय के लिए जाने जाते थे। इसलिए आज भी उनकी कहानियां बड़े सम्मान के साथ सुनाई जाती हैं। हमने अपने बड़े बुजुर्गों से अनेक कई किस्से सुने हैं। हम आज की जनरेशन करीब-करीब हर सच्चाई वाली बात में इस महान मूरत का नाम ज़रूर जोड़ते हैं। हमारे बड़े बुजुर्गों से हमने कई वाक्य सुने हैं, जैसे सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से, सत्य की हार नहीं होती,सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं, सत्यमेव जयते।...साथियों बात अगर हम सत्यमेव जयते इसकी करें तो हम अनेक शासकीय, अशासकीय स्थानों पर इसका उल्लेख ज़रूर देखते हैं। यही सत्य है कि हमेशा सत्य की विजय होती है।...साथियों बात अगर हम इस झूठ की करें तो कहावत है कि एक झूठ के पीछे सव झूठ बोलना पड़ता है और झूठ के दलदल में मनुष्य घुसता चला जाता है। जिससे उसकी वर्तमान पीढ़ी तो ध्वस्त होती ही है पर आने वाली पीढ़ियों में भी यह दोष समाया रहता है।...साथियों बात अगर हम भारतीय आध्यात्मिकता की करें तो हमें यही ज्ञान मिलता है कि सत्य व दौलत है जैसे पहले खर्च करो फिर जिंदगी भर आनंद पाओ और झूठ वह कर्ज है जिससे क्षणिक सुख पाओ और जिंदगी भर उसे चुकाते रहो बिल्कुल सत्य वचन!!!...साथियों यह बातअगर मानव के हृदय में बस जाए तो वाह क्या बात है!!! हम पृथ्वी लोक में ही स्वर्ग के दर्शन कर सकेंगे। अगर हर भारतीय व्यक्ति चाहे वह सरकारी हो या शासकीय कर्मचारी, मंत्री हो या नेता, कार्यकर्ता हो या मालिक, सभी अगर सत्यता रूपी दौलत को पूरी निष्ठा से खर्च करें अर्थात ईमानदारी से अपनी अफसर शाही ड्यूटी, व्यापार-व्यवसाय दिनचर्या अर्थात जीवन के हर काम हर मोड़ पर सत्यता बरसाएगें तो वह खुद तो जीवन का आनंद जरूर पाएंगें परंतु उससे अधिक भारत को स्वर्ग जैसा सुंदर रचना बनाने में अहम रोल अदा करेगें। भारत एक अपराध मुक्त भारत की परिकल्पना में साकार होगा। कोई अदालत, पुलिस स्टेशन, जांच एजेंसियां नहीं होगी क्योंकि यह सब झूठ और अपराध को काटने के लिए ही बनाई गई हैं।...साथियों बात अगर हम झूठ की करें तो हमने अपने व्यवहारिक जीवन में देखा होगा कि बेईमान, रिश्वतखोर, झूठा, भ्रष्टाचारी, धोखेबाज इत्यादि तरह के मानव कभी अपने जीवन में सुखी नहीं होते। चाहे कितना भी अवैध धन कमा लें, उनके पीछे परिवार का, उनके स्वास्थ्य का, मानसिक हालत हमेशा दुखों में बनी रहती है, उनके शरीर के नसों में झूठ रूपी खून दौड़ता है और इन नकारात्मक झूठे व्यवहारों से उनका क्षणिक आर्थिक सुख मिलता है परंतु उसके लिए उनको जीवन भर कष्टों में गुजारना पड़ता है। जितना क्षणिक सुख प्राप्त होता है वह ब्याज सहित याने अतिरिक्त दुख सहित यहीं इस जीवन में भोगना पड़ता है और फिर अंतमें पछताते हैं के ऐसा क्यों हुआ, ऊपर वाले से क्षमा याचना करते हैं। पर कहते हैं ना कि जब चिड़ियां चुग गई खेत अब पछतावे क्या होए??...। साथियों बात अगर हम सत्य की गहराई की करें तो,सत्य दो प्रकार का होता है - एक व्यवहारिक सत्य और दूसरा वास्तविक। व्यवहारिक सत्य का अर्थ है जैसा देखा, जैसा सुना और जैसा अनुभव किया, उसको वैसा ही बोलना सत्य कहलाता है। व्यवहारिक सत्य में हो सकता है, जो एक के लिए सत्य है, वो दूसरे के लिए असत्य हो। वैसे तो हर व्यक्ति अपने मुताबिक अपना सत्य बना लेता है। यह व्यवहारिक सत्य, अनुभव, नजरिए और देश, काल के आधार पर अलग-अलग हो सकता है। इसलिए इसमें मतभेद की संभावना बनी रहती है। ईमानदार और न्यायवादी व्यक्ति ही सत्य का पालन करता है। यह देखा गया है कि जो लोग ईमानदार होते हैं वह सदैव सच बोलते हैं। झूठे बेईमान और मक्कार लोग सदैव असत्य का फायदा लेकर अपना काम बनाते हैं। हम ऐसे लोगों से बचना चाहिए जो अपने फायदे के लिए (झूठ) असत्य बोलते हैं। सत्य का अर्थ है ‘सते हितम्’ अर्थात् जिसमें हित या कल्याण निहित हो। सत्य भूत, भविष्य एवं वर्तमान तीनों काल में एक सा रहता है तथा इससे यथार्थ का ज्ञान होता है। साधारण बातचीत में जो सच है, यथार्थ है उसे जानना, समझना, मानना, कहना एवं उसके अनुसार ही व्यवहार करना सत्य है। मानव बोध में सत्य के प्रति श्रद्धा एवं असत्य के प्रति घृणा स्वाभाविक रूप से पाई जाती है। मनुष्य जीवन के लिए सत्य सबसे बड़ी शक्ति हैं। जीवन तथा संसार के सत्य की तलाश कर उसे जीवन में अपनाना मानव मात्र का मूल उद्देश्य हैं। हमारी संस्कृति में सत्य को बड़ा महत्व दिया गया हैं। इस सम्बन्ध में एक महापुरुष ने ठीक ही कहा कि सत्य परेशान हो सकता है मगर पराजित नहीं। भारत की भूमि पर हरिश्चन्द्र जैसे राजा हुए जिनकी सत्यनिष्ठा के चलते वे सत्यवादी कहलाए। सत्य के रास्ते पर चलकर व्यक्ति बड़ी-बड़ी समस्या का समाधान आसानी से कर सकता है।सत्य के मार्ग पर चलकर कई लोगों ने सफलता प्राप्त कर अपना और अपने परिवार का भला किया है। सत्य के मार्ग पर चलकर कई लोगों ने सफलता प्राप्त कर दुनिया को बदला है। सत्य बोलने से व्यक्ति को सभी सम्मान देते हैं।ऐसा कहा जाता है कि तीन चीजें छुपाए नहीं छुपती- सूरज,चंद्रमा और सत्य। जो लोग सत्य का, न्याय का पक्ष लेते हैं उनकी प्रशंसा सभी लोग करते हैं। सत्य का साथ देने वालों को इतिहास स्वर्णिम पन्नों पर दर्ज करता है। परंतु जो लोग झूठ,असत्य का साथ देते हैं उनकी चारों ओर आलोचना होती है। किसी ने खूब ही कहा है कि
चन्द्र टरै, सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार।
पै दृढ़ हरिश्चन्द्र को टरै न सत्य विचार।
सांच बराबर तप नहीं,झूंठ बराबर पाप।
जाके हृदय सांच है,ताके हृदय आप ।।
अतः अगर हम पूरे उपरोक्त विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करेंगे तो हम पाएंगे के सत्य व दौलत है जिसे पहले खर्च करो फिर जिंदगी भर आनंद पाओ और झूठ वह कर्ज है जिसमें सैनिक सुख पाओ फिर जिंदगी भर जो करते रहो और सच्चाई की राह सुखद जीवन के लिए एक विनियोग है तथा झूठ का गंतव्य दुखी जीवन की चरम सीमा है।
-संकलनकर्ता- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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