नया सबेरा नेटवर्क
एक नदी के किनारे एक घर कच्चा
थोड़ी दूर पर एक मकान
बना था पक्का,
दोनों अपनी शोभा के लिए मशहूर हुए
आने जाने वालों का पर्यटक केंद्र हुए।
दोनों अपने को कोसते थे
हमेशा अपनी कमी को सोचते थे,
कभी खुद पर आंसू बहाते
तो कभी छेद से जल बरसाते ।
कच्चा मकान वाला कहता कि–
"मुझे तो मिट्टी से लीपा जाता है"
पक्का मकान बोलता था कि–
"मुझे तो सीमेंट लगा के घिसा जाता है।
दोनों अपनी दशा से उदास रहते
धूप छाव सब झेलते रहते,
एक दिन आंधी ने दोनों को डराया
दोनों को अपना अंतिम समय नजर आया ।
कच्चा मकान आंधी को झेल रहा था
पक्का वाला भी अपने लिए संघर्ष कर रहा था
पर आंधी ने किसी को नहीं छोड़ा
दोनों के साथ बहुत कुछ तोड़ा ।
वो दोनों अपने जीवन से खुश नहीं रह पाए
और मौत ने अंत में दोनो को एक साथ गले लगाए ।
इसीलिए जो मिला है उसका सम्मान कीजिए
निरादर और अपमान मत कीजिए।
दोनों ने एक शिक्षा दी –जिसको सब खुशी मिलती है वह भी खुश नहीं है,
जिसको कुछ नहीं मिला है
वह संघर्ष रत नहीं है।
मिलेगा सब बस कर्म और संतोष करो
डरना है तो नीचे वालों से नहीं
ऊपर वाले से डरो।
जो मिला है उसमें खुश रहा करो
ज्यादा लालच बुरी बला ।
–रितेश मौर्य
एम. ए. फाइनल,राज कॉलेज
मो. नं.8576091113
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