नया सबेरा नेटवर्क
मोहब्बत में धूप - छाँव बन जाती है,
धड़कते दिल की आवाज बन जाती है।
सुबह महकती है, शाम भी महकती है,
मोहब्बत रिश्ते की डोर बन जाती है।
जख्मों को सीती है, मरहम लगाती है,
तन्हाई में शहनाई बन जाती है।
भागते - दौड़ते रास्ते के आदमी की,
वह कोई बहती नदी बन जाती है।
सूख चुकी है जिन आँखों की नमी,
उन आँखों की वो झील बन जाती है।
फूल -सा हाथ इसका छूता किसी को,
बुझते चराग की रोशनी बन जाती है।
बदल देती है अदावत को ये प्यार में,
सारी समस्याओं का हल बन जाती है
मौत की धौंस से जो डरते हैं, डरें,
ये मरने वाले की साँस बन जाती है।
रामकेश एम.यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई
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