नया सबेरा नेटवर्क
लाशों से सजाते क्यों धरती,
मानवता से घबराते हो।
सब कुछ नहीं पद,सत्ता पैसा,
क्यों मजलूमों को रुलाते हो?
इतनी बर्बरता ठीक नहीं,
जिल्लत का जहर पिलाते हो।
इस नश्वर जग में आखिर क्यों,
अपनों पे सितम तू ढाते हो?
उस उपवन के हो तू माली,
क्यों पहचान मिटाते हो।
दफ़न करो तू अंधकार को,
क्यों कांटे के आँसू बोते हो?
चीख,दर्द,चीत्कार से दुनिया,
निशि-दिन घायल होती है।
शक्ति प्रदर्शन देख- देखकर,
फिज़ा वहाँ की रोती है।
सिर्फ विकास की बात करो,
तब सुख के बादल बरसेंगे।
मोहब्बत की किरनें झूमेंगी,
ज़ब सर न किसी के उतरेंगे।
अमनो चैन की उस दुनिया में,
तब मानवता करवट लेगी।
फांकों के दिन टल जायेंगे,
खुशहाली तब थिरकेगी।
मत रौंदों, न मसलों इज्जत,
अब ना तू नर-संहार करो।
अपने पथ से भटके लोगों,
एक दूजे से प्यार करो।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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