नया सबेरा नेटवर्क
नई दिल्ली । कोरोना के कहर और अफगानिस्तान में आए तालिबान राज के बीच दुनिया में घटनाक्रम तेजी से बदले हैं। कहीं सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ी हैं तो कहीं अर्थव्यवस्था का बुरा हाल हो गया है। इस बीच, अब नए गठजोड़ भी उभर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका (AUKUS) में त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी की घोषणा हुई है। ऐसे समय में जब चीन दुनिया के कई देशों के लिए खतरा बनता जा रहा है, यह डील काफी अहम हो जाती है। चीन की विस्तारवादी नीतियों पर अंकुश लगाने के लिए भारत समेत चार बड़े देशों का समूह (क्वाड) पहले ही अपनी भूमिका बढ़ा रहा है। आइए समझते हैं यह नई पार्टनरशिप भारत के लिए कैसे अच्छी खबर है।
वैश्विक सुरक्षा संबंधी ताजा घटनाक्रम को देखते हुए नई दिल्ली के आशावान होने की बड़ी वजह है। यह नया त्रिकोणीय सुरक्षा गठजोड़ चीन के लिए बड़ा संदेश है। सबसे महत्वपूर्ण बात कि क्षेत्र में चीन पर अंकुश लगाने के वैश्विक प्रयासों को यह और मजबूत करेगा। यह ऑस्ट्रेलिया की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाएगा, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत का करीबी रणनीतिक साझेदार बन चुका है। दूसरा, इस नए ट्रायंगल से क्वाड की क्षमता में इजाफा होने की पूरी संभावना है, जिसमें अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया भी सदस्य हैं। AUKUS ऑस्ट्रेलिया को पहली बार परमाणु पनडुब्बी देगा, इससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन हो सकेगा।
यह हमारी ताकत के सबसे बड़े स्रोत में निवेश है। हमारा गठबंधन (ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ) और उन्हें इस तरह से अपडेट करना ताकि वे आज और भविष्य में आने वाले खतरों से अच्छे से निपट सकें। यह अमेरिका के वर्तमान सहयोगियों और भागीदारों को नए तरीके से जोड़ना है।
क्वाड सुरक्षा साझेदारी नहीं बल्कि चार देशों का हिंद-प्रशांत क्षेत्र के मद्देनजर कूटनीतिक उद्देश्यों के लिए तैयार प्लेटफॉर्म है। ऐसे में यह ऑकस क्वाड में सुरक्षा का ऐंगल जोड़ता है। फिलहाल, क्वाड और ऑकस (AUKUS) समानांतर ट्रैक पर आगे बढ़ेंगे, पर भविष्य में इस बात की पूरी संभावना है कि ये आपस में मिलकर एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर सकें।
ऑस्ट्रेलिया के पीएम स्कॉट मोरिसन ने ट्वीट किया, 'ऑस्ट्रेलिया ने यूके और अमेरिका के साथ त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी की शुरुआत की है। इससे हमारी सुरक्षा और रक्षा क्षमताएं और मजबूत होंगी। अनिश्चितता भरे दौर में हमारे देश की सुरक्षा को मजबूत करने का यह ऐतिहासिक मौका है।' साफ है कि ऑकस गठजोड़ ऑस्ट्रेलिया की क्षमताओं को बढ़ाकर चीन के सैन्य ताकत को साधने के लिए है। परमाणु पनडुब्बी एक अहम हथियार ही नहीं, उससे कहीं ज्यादा बड़ा संदेश है।
चीन ने हाल के वर्षों में अपनी सैन्य ताकत काफी बढ़ा ली है। दक्षिण चीन सागर से लेकर भारत की सीमा पर उसकी हरकतों से हर कोई परेशान है। चीन की नौसेना का विस्तार हो रहा है। अमेरिकी अधिकारियों की मानें तो दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे तेजी से चीन की मिलिट्री पावर बढ़ रही है। चीन ने अपनी इकॉनमी की ताकत इसमें झोंक दी है।
हिंद प्रशांत क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया की ताकत बढ़ाना इस साझेदारी का उद्देश्य है। मॉडर्न सैन्य तकनीक ऑस्ट्रेलिया को दी जाएगी। ऑस्ट्रेलिया को अपनी सेना के लिए लंबी दूरी की मिसाइलें मिलेंगी। उसे मिलने वाली टॉमहाक क्रूज मिसाइलों की मारक क्षमता 900 किमी है। लंबी दूरी की एंटी शिप मिसाइल और गाइडेड मिसाइल सेना के लिए मिलेंगी।
फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया, दोनों हिंद-प्रशांत में भारत के दो बड़े पार्टनर हैं। साल 2016 में फ्रांस ने ऑस्ट्रेलिया को पनडुब्बी की आपूर्ति करने के लिए 40 अरब डॉलर की डील साइन की थी। अब ऑस्ट्रेलिया ने इस डील को रद्द कर दिया है और यूके-अमेरिका के साथ परमाणु पनडुब्बी की डील की है। जाहिर सी बात है, फ्रांस को अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया दोनों से शिकायत होगी।
चीन की दादागिरी के दिन लद गए। क्वाड के बाद अब एक और गठजोड़ हुआ है। अमेरिका ऑस्ट्रेलिया को बेहद घातक परमाणु पनडुब्बी और अमेरिकी ब्रह्मास्त्र कहे जाने वाली टॉमहॉक क्रूज मिसाइलें देने को तैयार हो गया है। खास बात यह है कि ब्रिटेन के बाद ऑस्ट्रेलिया दुनिया का ऐसा देश है जिसे ये महाविनाशकारी हथियार मिलेंगे।
इस डील पर चीन की बौखलाहट दिखने लगी है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा, ‘अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया परमाणु ऊर्जा से संचालित पनडुब्बियों में सहयोग कर रहे हैं जो क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता को काफी कमजोर कर देगा, हथियारों की होड़ बढ़ा देगा और परमाणु अप्रसार की अंतरराष्ट्रीय कोशिशों को नुकसान पहुंचाएगा।’
भारत ने अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच त्रिपक्षीय सुरक्षा समझौते पर तत्काल कोई टिप्पणी नहीं करने का फैसला किया है। हिंद-प्रशांत में चीन का मुकाबला करने के प्रयास के रूप में देखी जाने वाली साझेदारी, अमेरिका और ब्रिटेन को पहली बार परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों को विकसित करने के लिए ऑस्ट्रेलिया को प्रौद्योगिकी प्रदान करने की अनुमति देगी। जब नई सुरक्षा साझेदारी पर सवाल किए गए तो विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, 'फिलहाल इस मुद्दे पर साझा करने के लिये मेरे पास कुछ भी नहीं है।'
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