नया सबेरा नेटवर्क
आँसू से लथपथ किसानों की राहें,
कोई उनसे कह दे वो घर लौट जाएँ।
सियासी अखाड़े उन्हें छोड़ दें अब,
मुसीबत पहाड़ों की या तोड़ दें अब।
लागत किसानों की तो वो दिलाएँ,
कोई उनसे कह दे वो घर लौट जाएँ।
आँसू से लथपथ किसानों की राहें,
कोई उनसे कह दे वो घर लौट जाएँ।
चूल्हे बुझे उनके पैरों में छाले,
महंगाई ने कितनों से छोड़े नेवाले।
आगे कहीं अब वो गोली न खाएँ,
कोई उनसे कह दे वो घर लौट जाएँ।
आँसू से लथपथ किसानों की राहें,
कोई उनसे कह दे वो घर लौट जाएँ।
पसलियों से सटती है देखो वो आंतें,
खेतों में कटती हैं जाड़े की रातें।
हम ए.सी. में सोते उन्हें भी सुलाएँ,
कोई उनसे कह दे वो घर लौट जाएँ।
आँसू से लथपथ किसानों की राहें,
कोई उनसे कह दे वो घर लौट जाएँ।
भरता उदर सबका रहे क्यों वो भूखा,
हौसला हमेशा क्यों उसका है सूखा?
खुद की वो लाश अपने कंधे उठाएँ,
कोई उनसे कह दे वो घर लौट जाएँ।
आँसू से लथपथ किसानों की राहें,
कोई उनसे कह दे वो घर लौट जाएँ।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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