सभी क्षेत्रीय भाषाओं के सहज और प्रचलित शब्दों को राजभाषा हिंदी में प्रयोग करने का भरसक शासकीय प्रयास सराहनीय - एड किशन भावनानी
नया सबेरा नेटवर्क
गोंदिया - भारत अपनी संस्कृति, आध्यात्मिकता, प्रथाएं, क्षेत्रीय भाषाओं के समन्वय इत्यादि अनेक सांस्कृतिक उच्च मानदंडों में आपसी तालमेल, अनेकता में एकता के सिद्धांत के लिए विश्व प्रसिद्ध है। पूरा विश्व 135करोड़ की जनसंख्या वाले भारत देश को विरासत में मिले लाजवाब मानवीय ख़जाने व संस्कृति को देखने, भारत में सैलानी होकर आने में उत्सुक हैं। उस पर भी अभी कुछ सालों से ऐसे सांस्कृतिक तथा मानवीय ख़जाने को रणनीतिक रोडमैप बनाकर उसे और निखारा जा रहा है, ताकि बौद्धिक कौशल, क्षेत्रीय भाषाई तालमेल, सांस्कृतिक और प्रथाओं का, सभी क्षेत्रीय भाषाओं को उनके सहज और प्रचलित शब्दों को राजभाषा हिंदी में प्रयोग करने के यदि प्रयासके क्रियान्वयन में तेज़ी लाई जाए तो 135 करोड़ देशवासी आपस में मिलजुल कर रहेंगे तो सोने पर सुहागा वाली कहावत को चरितार्थ कर मील का पत्थर साबित होंगे। और हमारे देश का विकास भी की गति काफ़ी गुना बढ़ जाएगी। साथियों बात अगर हम भारत में क्षेत्रीय भाषाओं की करें तो हमारे यहां अनेकों खूबसूरत बोलियों की भाषाएं हैं, जिन्हें सुनकर ख़ुशी और गर्व महसूस होता है!! परंतु बहुत ऐसी भाषाएं भी हैं जिनका अर्थ समझ में नहीं आता और एक प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जाता है कि यह हमारे साथी क्या बोल रहे हैं?? ऐसे में हम आपसी सहायता या मदद का लाभ ले और दे नहीं सकते, हालांकि हमारी राजभाषा हिंदी है परंतु क्षेत्रीय भाषाओं का उतना ही मान सम्मान व महत्व है और उपराष्ट्रपति महोदय भी कह चुके हैं कि क्षेत्रीय भाषाओं और अपनी मातृभाषाओं को विलुप्त होने से बचाएं और उन्हें प्रैक्टिकल में लाएं!! और यह सच बात है कि हमें अपनी मातृभाषाओं को संजोकर रखना है होगा क्योकि यह हमारी अनमोल धरोहर है, जिसके लिए हमें अगली पीढ़ियों को जवाब देना होगा। परंतु अगर हम इन भाषाओं को हमारी राजभाषा हिंदीसे सहज व सरल शब्दों का प्रयोग कर उसे क्रियान्वयन करें ताकि आम जनता के समझ में भी भाषाएं व संस्कृति आ सके और अनेकता में एकता का भाव साकार हो सके। साथियों बात अगर हम भारतीय संस्कृति परंपराओं में सभी क्षेत्रीय भाषाओं के बहुमूल्य सहयोग की करे तो हमारी सभी भाषाएं एक माला में पिरोए मोतियों के समान हैं, जो बड़ी खूबसूरती से यह माला भारत की आन बान शान है। इन भाषाओं के बीच बेहतरीन तालमेल व सामंजस्य स्थापित करने के लिए हिंदी को सखी के रूपमें उपयोग करने से बहुलवादी संस्कृति व परंपराओंमें सामाजिक अलगाओं से परे लोगों को एकजुट करने की शक्ति की नींव पड़ेगी। साथियों मेरा मानना है कि सभी भारतीय भाषाओं में कुछ मूल कॉमन सकारात्मक शब्दकोश या सामान्य प्रचलन भाषा का प्रचलन हिंदी सखी भाषा में भारत के आम नागरिकों तक पहुंचाने का अभियान चलाया जाए, तो भाषाओं कि भारतमाला की कड़ी में खूबसूरत निखार आएगा। हालांकि यह सकारात्मक कार्य सभी राज्य तथा भाषाओं के बुद्धिजीवियों के साथ आपकी सकारात्मक तालमेल के साथ करना होगा जिससे हमें सफलता अपेक्षाकृत अधिक मिलेगी। साथियों बात अगर हम 2 सितंबर 2021 को एक केंद्रीय गृह मंत्री के अनुवाद ब्यूरो के निरीक्षण बैठक की करें तो पीआईबी की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, उन्होंने ब्यूरो द्वारा किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा की और निर्देश दिया कि केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो अनुवाद करते समय सहज एवं सरल शब्दों का प्रयोग करें ताकि अनुवाद आम जन के समझ में आसानी से आ सके। मशीनी अनुवाद का उपयोग इस तरह करना चाहिए ताकि मशीन द्वारा किए गए अनुवाद में यदि कोई चूक या त्रुटि दिखलाई पड़े तो उसे मानव मेधा और भाषिक संस्कारों से दूर किया जा सके। उन्होंने कहा कि अनुवादक को अपने ज्ञान और भाषिक क्षमता का उपयोग करते हुए सरल और सहजवाक्यों का प्रयोग करना चाहिए। हिंदी का कार्य महत्वपूर्ण है। हिंदी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है इसलिए राजभाषा है। इसे केवल सरकारी भाषा न मानें बल्कि इसके प्रति संपर्क भाषा के रुप में सम्मान,आदर भावना और लगाव होना चाहिए। हिंदी की इसी भावना को अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी शामिल करें। उन्होंने कहा कि माननीय पीएम के नेतृत्व में केंद्र सरकार राजभाषा हिन्दी और सभी क्षेत्रीय भाषाओं के बीच बेहतर समन्वय के लिए निरंतर प्रयासरत है। उन्होने कहा कि माननीय गृह मंत्री ने हाल ही में एक बैठक में एक ऐसे वातावरण का निर्माण करने का आवाहन किया था जिसमे हिन्दी का स्थानीय भाषाओं की सखी के रूप में सहज विकास हो सके और हम उनके मार्गदर्शन में इस दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि ब्यूरो में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, ब्यूरो हिंदी का ऐसा गीत तैयार करे जोसहज,सरल एवं लोकग्राही हो जिसके मूल भाव में हिंदी के प्रचार प्रसार की झलक हो और जिसमें क्षेत्रीय भाषाओं की भी झलक दिखाई दे।हिंदी के विकास में अभी तक जितने भी कदम उठाए गए हैं वास्तव में उस अनुपात में हिंदी का विकास नहीं हो पाया है। अत: हिंदी को जन जन की भाषा बनाने की आवश्यकता है। हिंदी क्षेत्रीय भाषाओं को साथ लेकर चलने वाली भाषा है। अत: हमे क्षेत्रीय भाषाओं के सहज और प्रचलित शब्दों को राजभाषा हिंदी में प्रयोग करने का भरसक प्रयास करना चाहिए। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे के हिंदी का स्थानीय भाषाओं की सखी के रूप में सहज विकास का वातावरण निर्माण कर सभी क्षेत्रीय भाषाओं के बीच बेहतर समन्वय के प्रयास सराहनीय हैं। तथा सभी क्षेत्रीय भाषाओं के सहज और प्रचलित शब्दों को राजभाषा हिंदी में प्रयोग करने का भरसक शासकीय प्रयास तारीफ़ के काबिल है।
-संकलनकर्ता लेखक कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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