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मुस्लिम-जाट गठजोड़ बिगाड़ देगा बीजेपी का खेल? | #NayaSaberaNetwork

नया सबेरा नेटवर्क
 मुजफ्फरनगर । उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही राजनीतिक हलचल भी शुरू हो गई है। नेता अपने राजनीतिक समीकरण सेट करने के लिए ऐक्टिव हो गए हैं। दलबदल का खेल भी शुरू हो गया है। दल-बदलू नेताओं में बीएसपी और कांग्रेस के नेताओं की तादाद ज्यादा है। जिले में सबसे ज्यादा नेताओं में होड़ एसपी में शामिल होने की है, जबकि उसके बाद बीजेपी और रालोद में भी काफी नेताओं ने शामिल होकर राजनीतिक ताल ठोंक दी है।
 जिस तरह से एसपी-बीजेपी में नेता शामिल हो रहे हैं और बीएसपी-कांग्रेस को अलविदा कह रहे हैं, उससे नजर आ रहा है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी-एसपी के बीच ही कड़ा मुकाबला होने के आसार हैं। मुजफ्फरनगर में राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा रैलियों और सभाओं का दौर शुरू हो गया है। 11 नवंबर को एसपी के मुखिया अखिलेश यादव बुढ़ाना में सभा करने जा रहे हैं।
 साल 2022 में यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं। विधानसभा चुनाव की आहट के चलते जहां राजनीतिक दलों के नेता सक्रिय हो गए हैं तो वहीं लोगों में भी चुनाव को लेकर उत्सुकता बढ़ने लगी है। चाय की दुकानों और नुक्कड़ गलियों में चुनावों को लेकर चर्चा होने लगी है। लोग अपने-अपने तरीके से राजनीतिक समीकरण बैठाकर अपने दल की जीत की दावेदारी करने लगे हैं। इसी बीच राजनीतिक गलियारों में सबसे बड़ी हलचल दल-बदल के रूप में नजर आ रही है। जिस तेजी से नेता दल बदल रहे हैं, उसका असर कहीं न कहीं आगामी विधानसभा चुनाव पर भी पड़ेगा। इस बार सबसे ज्यादा नेता बीएसपी-कांग्रेस को छोड़कर गए हैं और एसपी-बीजेपी में शामिल हुए हैं। कुछ नेताओं ने रालोद की भी सदस्यता हासिल की है।
 बीएसपी से राज्यसभा सदस्य रहे राजपाल सैनी ने बीएसपी को छोड़कर अपने पुत्र शिवान सैनी और समर्थकों के साथ एसपी की सदस्यता हासिल की। बीएसपी के पुरकाजी से विधायक रह चुके अनिल कुमार ने भी बीएसपी की सदस्यता छोड़कर एसपी की सदस्यता हासिल की। बीसपी के सांसद रह चुके कादिर राणा ने बीएसपी की सदस्यता छोड़कर एसपी की सदस्यता हासिल की। बीएसपी के चरथावल से विधायक रह चुके नूरसलीम राणा ने बीएसपी की सदस्यता छोड़कर रालोद की सदस्यता हासिल की।
  बीएसपी के मीरापुर से विधायक रह चुके हाफिज जमील ने बीएसपी की सदस्यता छोड़कर कांग्रेस की सदस्यता हासिल की। वेस्ट यूपी में कांग्रेस की रीढ़ कहलाये जाने वाले एवं मुजफ्फनगर के दिग्गज माने जाने वाले पूर्व सांसद हरेन्द्र मलिक ने कांग्रेस की सदस्यता छोड़कर अपने विधायक पुत्र पंकज मलिक के साथ एसपी की सदस्यता हासिल की। कांग्रेस के नगराध्यक्ष जुनैद रउफ ने कांग्रेस की सदस्यता छोड़कर एसपी की सदस्यता हासिल की। बीकेयू के आंदोलनों को धार देने वाले राजू अहलावत ने बीकेयू छोड़कर बीजेपी की सदस्यता हासिल की। इसके अलावा अनेक नेताओं ने अपने दलों को छोड़कर दूसरे दलों की सदस्यता हासिल की।
 मुजफ्फरनगर का इतिहास रहा है कि यहां पर जब भी मुस्लिम-जाट गठजोड़ बना है, तभी यहां की राजनीति ने नई करवट ली है। 2013 के साम्प्रदायिक दंगों के बीच दोनों सम्प्रदायों के बीच पैदा हुई दूरियों ने यहां के राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल दिए थे, जिसका परिणाम यह रहा था कि जिले की सभी छह विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा हो गया था, जबकि एसपी, बीएसपी और कांग्रेस का यहां से पत्ता साफ हो गया था। रालोद के मुखिया चौधरी अजित सिंह को यह बात समझ आ गयी थी और उन्होंने दोनों सम्प्रदायों के बीच पैदा हुई दूरियों को समाप्त करने के लिए पूरे प्रयास किए थे और वह काफी हद तक कामयाब भी हुए थे।
 हाल फिलहाल किसान आंदोलन के बाद जिस तरह से दोनों सम्प्रदायों के बीच निकटता बढ़ रही है, वह जिले की सभी विधानसभा सीटों को प्रभावित कर सकती है। दूसरी ओर दलितों की बीजेपी से नाराजगी भी आग में घी का काम कर सकती है। दलितों की एसपी से निकटता बीजेपी और बीएसपी के लिए संकट पैदा कर सकती है। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले जिले में बीएसपी का अपना वजूद था और बीएसपी भी मुस्लिम व दलित गठजोड़ के सहारे छह विधानसभा सीटों में से तीन सीटों पर काबिज थी, जबकि एक रालोद और दो सीटें एसपी के पास थी, जबकि बीजेपी का सूपड़ा साफ था।
 डॉ. संजीव बालियान (केंद्रीय राज्यमंत्री), कपिल देव अग्रवाल (राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार), हरेन्द्र मलिक (पूर्व सांसद), कादिर राणा (पूर्व सांसद), सईदुज्जमां (पूर्व सांसद व पूर्व राज्यमंत्री), अमीर आलम खान (पूर्व सांसद व पूर्व राज्यमंत्री), नवाजिश खान पूर्व विधायक, नूरसलीम राणा (पूर्व विधायक), अनिल कुमार (पूर्व विधायक), जमील अहमद (पूर्व विधायक), मुकेश चैधरी (पूर्व दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री), उमेश मलिक (विधायक बुढ़ाना), प्रमोद उंटवाल (विधायक पुरकाजी), विक्रम सैनी (विधायक खतौली), प्रमोद त्यागी (जिलाध्यक्ष एसपी) आदि जिले के प्रमुख सक्रिय नेता हैं।
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