नया सबेरा नेटवर्क
आशिक़ी!
मेरी नजरों से नजरें मिलाती रहो,
प्यार का आईना यूँ दिखाती रहो।
तेरे आने से गुलशन की रौनक बढ़ी,
ऐसी अपनी अदा तू दिखाती रहो।
लाख दुनिया शिकायत ये करती रहे,
तू शिकायत की शबनम सुखाती रहो।
मेरी चुनी मोहब्बत का पहला कदम,
मेरे मन को तू ऐसे रिझाती रहो।
क़त्ल करना न आँखों की तीरों से तू,
इस जवां दिल को यूँ गुदगुदाती रहो।
तेरी मदहोश जवानी के कायल हैं हम,
हुस्न का मेघ ऐसे बरसाती रहो।
इन फिजाओं में खुद की वो खुशबू नहीं,
अपने नाजुक बदन से महकाती रहो।
उम्रभर का है देखो ये रिश्ता सनम,
मेरी राहों से कांटे हटाती रहो।
रोक पाया न मौसम खिज़ा का कोई,
मेरे मन को बस ऐसे सुलगाती रहो।
आशिक़ी की हवाएँ ये बूढ़ी न हों,
जाम आँखों से ऐसे पिलाती रहो।
रामकेश एम. यादव(कवि, साहित्यकार), मुंबई
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