नया सबेरा नेटवर्क
आत्मचेतस ब्रह्मराक्षस
चूँकि मैं ब्रह्मराक्षस
नहीं होना चाहता था....
इसीलिए मैंने समाज में
अपनी स्वीकार्यता जानने को,
प्रतिध्वनि और प्रतिक्रिया की
आस में जोर-जोर से....
अपनी मान्यताओं का
शोर मचाता रहा,
आवाज देता रहा
लगातार.......
किंतु कभी वापस आई ही नहीं
कोई प्रतिध्वनि ही या
कोई प्रतिक्रिया ही....
हताश और निराश होकर
मैंने स्वीकार कर लिया कि
सुनने वालों के कान बहरे हैं और
पहाड़ों सी ऊँचाई रखने वालों से
टकराने की ताकत-कुब्बत
मुझमें नहीं है और....मेरा शोर...
मेरी आवाज.... नक्कारखाने में....
तूती की आवाज ही है
बस इसीलिए मित्रों अब मैं...
ब्रह्मराक्षस ही हो गया हूँ....!
और शोध कर जान भी चुका हूं
अपनी गहराई और ऊँचाई को
साथ ही यह भी जान चुका हूँ कि
इस माया जगत में,
दिनों-दिन बढ़ता जीवन-संघर्ष
हमें कर्तव्य पथ से,
विचलित कर रहा है और
सब कुछ पा लेने की आतुरता में
यहाँ स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को
कोई स्थान नहीं.......
और सच बताऊँ मित्रों.....!
अब मैं ब्रह्मराक्षस घोषित होकर
खुश भी हूँ.....क्योंकि मुझे.....
अब इस बात का भी
एहसास हो गया है कि
समाज से टकराकर और
फ्रेम से बड़ी तस्वीर बनाकर
मनुष्य कभी भी.....
स्वयं अपने आप को अथवा
अपनी बनाई हुई तस्वीर को
अमरता की दिशा दे नहीं सकता..
अमरता की दिशा दे नहीं सकता..
रचनाकार- जितेन्द्र दुबे
क्षेत्राधिकारी नगर, जौनपुर।
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