कुछ पाने की कोशिश में, कदम लड़खड़ाए तो संभल जाना, लेकिन चाहे कुछ भी हो, तुम हार मत मानना.... मछलीशहर विधानसभा के डभियां गांव के रहने वाले रोहित की कहानी भी कुश्ती में गोल्ड मेडल लाने वाली महावीर सिंह फोगाट की बेटी गीता-बबिता की तरह ही संघर्षों से भरी पड़ी है. रोहित के पिता सभाजीत यादव को शुरू से ही खेल-कूद पसंद था. सभाजीत खुद मैराथन में हिस्सा लिया करते थे और कई मेडल जीते. खेल के प्रति लगाव और संसाधनों के अभाव के कारण देश के लिए मेडल लाने का सपना सभाजीत पूरा नहीं कर सके तो उन्होंने अपने बेटों को इसकी ट्रेनिंग देना शुरू किया. बड़े बेटे राहुल और रोहित को महज 8 साल की उम्र से सभाजीत ट्रेनिंग देने लगे.
बेटों को जैवलिन प्लेयर बनाने के लिए उन्होंने बांस काट कर फेंकना शुरू करा दिया.
गांव में घर के सामने ही दोनों बेटे सुबह शाम अभ्यास करने लगे. सुबह-सुबह ही सभाजीत दोनों बेटों को जगा देते थे. उठाने का बाद शुरू हो जाती थी कड़ी मेहनत. बेटों को कहीं आने-जाने की भी इजाजत नहीं रहती थी. बच्चों के खाने-पीने का ध्यान भी पिता सभाजीत देते थे. सभाजीत के घर तक आने जाने के लिए कोई रास्ता भी नहीं है. पगडण्डी के सहारे उनके घर तक पहुँचा जाता है. सभाजीत बताते हैं कि आज उनका 21 वर्षीय बेटा रोहित अमेरिका में खेलने गया है. इस बात से उन्हें काफी खुशी है, उन्हें पूरा भरोसा है कि बेटा देश के खेलेगा और मेडल लाएगा. अब वो अपने तीसरे और सबसे छोटे बेटे रोहन को भी इसी तरह ट्रेनिंग दे रहे हैं.
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