जौनपुर। साहित्य में शहरों और कस्बों पर लिखने की सुदीर्घ परंपरा रही है। पश्चिम से लेकर पूरब तक मुंबई से लेकर कोलकाता तक और दिल्ली से लेकर लखनऊ तक खूब लिखा गया है। जौनपुर शहर पर रोचक किस्सागोई से भरी ऐसी ही एक किताब ‘सिराज–ए–दिल जौनपुर’ प्रकाशित हुई है। छोटे छोटे टुकड़ों में बटी आईपीएस अमित श्रीवास्तव की यह किताब एक खांटी जौनपुरिया की अपने हिस्से में आए शहर की बायोग्राफी है जिसमें भूत और वर्तमान, इतिहास, भूगोल और संस्कृति–समाज सब एक साथ चहलकदमी करते हैं। यह किताब सिर्फ बीते दिनों का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आख्यान भर नहीं है बल्कि वर्तमान का भी एक जीवंत दस्तावेज है। आप किताब के अध्याय दर अध्याय पढ़ते जाते हैं और लेखक की फोटोग्राफिक नजर से जौनपुर की इमारतों, परंपराओं और भूले बिसरे, अल्पख्यात किरदारों से साक्षात्कार करते चलते हैं। एक अर्थ में यह किताब जौनपुर पर जमी धूल की परत को हटाने का प्रयास करती है। बेहद रोचक और पठनीय यह किताब सेतु प्रकाशन से आई है। आपको बता दें कि इस किताब के लेखक आईपीएस अमित श्रीवास्तव जौनपुर उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर से हिंदी साहित्य में परास्नातक और कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त किए हैं। अमित श्रीवास्तव उत्तराखंड कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं एवं वर्तमान में देहरादून में पदस्थ हैं. पिता कन्हैया लाल एडवोकेट और माता प्रेमलता श्रीवास्तव का आशीर्वाद इन्हें हमेशा मिलता रहता है। इस किताब के अलावा 6 किताबें और प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें कविता संकलन - बाहर मैं... मैं अंदर ... , संस्मरण - पहला दखल, उपन्यास - गहन है यह अंधकारा, कहानी संग्रह - कोतवाल का हुक्का, डायरी - कोविड ब्लूज और आलोचना - भूमंडली करण एवं समकालीन हिंदी कविता शामिल है।
किताब का लिंक और प्रकाशक का फोन नंबर
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