परम्परागत फाग गीतों को सुन झूम उठे श्रोता
नौपेड़वा, जौनपुर। सुरुचिपूर्ण लोक संगीत को जीवंत रखने के उद्देश्य से श्री द्वारिकाधीश लोक संस्कृति संस्थान ने बक्शा विकास खण्ड के चुरावनपुर तेलीतारा गांव में लोक संगीत समारोह का आयोजन किया। देर रात तक चले इस फागुनी धमाल में लोग आनन्दित होते रहें। पिछले 7 दशकों से यह संस्थान अनवरत जनपद के लोक कलाकारों को मंच प्रदान करता आ रहा है। विलुप्त हो रहे जनपद के फाग गीतों में फगुआ, चौताल, चहका, धमार, उलारा, बेलवइया, चैता आदि अवधी लोक गीतों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु सक्रिय है।
फागुनी गीतों के विविध गायन में श्रीपति उपाध्याय, लोक गायक सत्यनाथ पांडेय, राम आसरे तिवारी, कैलाश शुक्ल, त्रिवेणी पाठक, स्वेता, प्रियांशी, इस्माइल उस्ताद, भुट्टे अली, नजरू उस्ताद, लक्ष्मी उपाध्याय, कृष्णानन्द उपाध्याय सहित अन्य गायकों ने "विंध्याचल साँकर खोरी रे भगवती, "घरवन में गौरैया चहचहानी हो रामा पिया नही आये", "सखियां सहेलियां भइली लरिकैया पिया नहीं आये" झुप झुपवन बहे बयार अटरिया लम्बी छवाय द हे बालमा, रात सेजिया पे मोर झुलनी हेरानी बलमुआ, ना देबे कजरवा तोहके तू मरबे केहू के जान रे और झुलनी करि कोर कटार जुलुम करि डारे एवं उलारा फगुनवा बीता जाय मोरी गोइया आये न मोरे सईयां जैसे फागुनी गीतों को सुना कर श्रोताओं को भाव—विभोर कर दिया।
इस मौके पर स्वागत करते हुए पूर्वांचल विश्वविद्यालय के जनसंचार विभागाध्यक्ष प्रो. मनोज मिश्र ने कहा कि आज होली के नाम पर सोशल मीडिया में परम्परागत लोक गीतों के स्थान पर अश्लील गीतों का प्रदर्शन हो रहा है। संस्थान का प्रयास है कि हमारी पुरातन लोक परंपरा विलुप्त न होने पाए। लोक गायकों को वरिष्ठ विज्ञान कथाकार एवं संचारक डॉ. अरविंद मिश्र ने अंगवस्त्रम प्रदान करके सम्मानित किया। समारोह का संचालन श्रीपति उपाध्याय एवं धन्यवाद ज्ञापन कौस्तुभ मिश्र ने किया।
इस अवसर पर पूर्व गृह राज्यमंत्री महाराष्ट्र कृपाशंकर सिंह, पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह, डॉ. सूर्य प्रकाश सिंह, डॉ. ज्ञानदेव दूबे, पूर्व प्रमुख जय प्रकाश सिंह, रवींद्र सिंह, रत्नाकर सिंह, विकेश उपाध्याय, प्रबुद्ध दुबे, आशीष सिंह, जितेंद्र मिश्र, डॉ. राजमणि मिश्र, डॉ. राजदेव दुबे, प्रो. राम नारायण, प्रो. मानस पांडेय, रामकृष्ण त्रिपाठी, सभाजीत द्विवेदी, संयुक्त निदेशक एमएल गुप्ता, देवराज पाण्डेय सहित सैकड़ों लोग मौजूद रहें। आयोजन श्री द्वारिकाधीश लोक संस्कृति एवं वानस्पतिकी विकास संस्थान ने किया।
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