सिरकोनी, जौनपुर। जो भक्तों के कष्टों को दूर करता है, उसे भगवान कहते हैं परंतु जो भगवान के कष्ट को भी दूर कर दे, उसे हनुमान कहते हैं। उक्त उद्गार श्री हनुमान मंदिर महरूपुर में टीडीपीजी कालेज के पूर्व प्रबंधक अशोक सिंह की तृतीय पुण्यतिथि पर आयोजित मानस कथा में अयोध्या से पधारे स्वामी देवेशदास ने व्यक्त किया। साथ ही आगे कहा कि अयोध्या के वासी प्रभु राम को अतिप्रिय थे। सीता जी उन्हें अतिशय प्रिय है। भरत उन्हें प्राणों के समान प्रिय है। कथा व्यास ने भ्रातन सहित राम एक बारा। संग परमप्रिय पवन कुमारा।। चौपाई की व्याख्या करते हुए कहा कि प्रभु राम के लिए हनुमान परमप्रिय हैं।
कथा के दूसरे व्यास मानस राजहंस डा. आरपी ओझा ने सुंदर कांड का प्रसंग प्रस्तुत करते हुए कहा कि सीता की खोज में निकले हनुमान को अनेक बाधाओं को पार करना पड़ा। अत्यंत लघु रूप धारण करके उन्होंने रावण के शयन करते दिखायी पड़ी। हनुमान भ्रमित हो गये कि कहीं यह स्त्री सीता तो नहीं परंतु उन्हें ध्यान में आया कि प्रियतम के विरह में व्याकुल कोई भी स्त्री निश्चिन्त होकर नहीं सो सकती। मानस राजहंस ने विरहाग्नि में जलते हुए कोई चैन से जीता नहीं। प्रियतम प्रतीक्षारत हृदय यूं शांत रस पीता नहीं। निश्चित निद्रामग्न यह श्रीराम परिणीता नहीं। यह सुंदरी कोई और है प्रभु राम की सीता नहीं। पंक्तियों का उद्धरण प्रस्तुत किया।
कथा के आरंभ में उन्होंने स्व. अशोक जी के व्यक्तित्व को रेखांकित करते हुए कहा कि उनके साथ में रहने से लोग गौरव की अनुभूति करते थे। इस अवसर पर राज बहादुर सिंह, पूर्व प्राचार्य डा. विनोद सिंह, पूर्व प्रमुख सुरेन्द्र प्रताप सिंह, प्रबंध समिति के अध्यक्ष श्रीप्रकाश सिंह, देवेन्द्र प्रताप सिंह, धर्मेन्द्र सिंह, वीरेन्द्र सिंह एडवोकेट सहित तमाम लोग उपस्थित रहे। अन्त में टीडीपीजी कालेज के प्रबंधक राघवेन्द्र प्रताप सिंह समस्त आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया।
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