नदियों के अध्ययन में उपयोगी है रिमोट सेंसिंग तकनीक: डा. अतुल
सरायख्वाजा, जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय स्थित रज्जू भैया संस्थान के अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंसेज विभाग में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यशाला के 5वें दिन जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ डा. सुशील कुमार ने जल संरक्षण एवं जल स्रोतों का पता लगाने हेतु रिमोट सेंसिंग तकनीक की उपयोगिता पर चर्चा की। साथ ही कहा कि वर्तमान परिदृश्य में जल संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि अगर गंगा के मैदानी इलाकों में जल संकट बढ़ रहा है तो यह संपूर्ण भारतवर्ष के लिए बहुत बड़े खतरे का सूचक है, इसलिए नदियों, तालाबों व अन्य प्राकृतिक जल स्रोतों को बचाना नितांत आवश्यक है। इसी क्रम में पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय के डा. अतुल सिंह ने नदी विज्ञान के क्षेत्र में रिमोट सेंसिंग तकनीकी के उपयोग पर व्याख्यान देते हुये कहा कि भारत की नदियों के बनने का क्रम कहीं न कहीं हिमालय की उत्पत्ति से संबंधित है तथा हिमालय पर्वतमाला में होने वाली प्रत्येक भूगर्भीय घटनाओं से नदियों की प्रकृति प्रभावित होती है। नदियों में विपथन की अपनी प्रकृति होती है जो स्वाभाविक है तथा हम इसे रोक नहीं सकते, इसलिए नदी परिक्षेत्र में होने वाले प्रत्येक निर्माण सहित अन्य विकास योजनाओं से पहले नदी का पूर्व में विपथन एवं पथ विस्थापन की सटीक जानकारी होना आवश्यक है, इसलिए नदियों के अध्ययन में रिमोट सेंसिंग की उपयोगिता और भी बढ़ जाती है। तकनीकी सत्रों का संचालन कार्यशाला के संयोजक डा. श्याम कन्हैया ने किया। इस अवसर पर अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंसेज के विभागाध्यक्ष डॉ नीरज अवस्थी, डा. शशिकांत यादव, डा. सौरभ सिंह, डा. श्रवण कुमार सहित सभी प्रतिभागियों सहित विभाग के विद्यार्थियों की उपस्थिति रही।
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