​जब यातना की हद हो जाती है तो अन्दर से टूटा इंसान अतुल सुभाष ही हो जायेगा: विकास तिवारी

जौनपुर। अतुल सुभाष का मैट्रीमोनियल डिस्प्यूट हमारे दीवानी न्यायालय जौनपुर में चल रहा था। मैट्रीमोनियल डिस्प्यूट को कुछ पेंचदारों ने गम्भीर आपराधिक मामलों में बदल दिया।मामले से तंग आकर अतुल ने सुसाइड कर लिया है जिसका मीडिया ट्रायल नेशनल और इंटरनेशनल मीडिया पर पिछले दो दिनों से लगातार चल रहा है। कोई ऐसा प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनल नहीं होगा जिस पर अतुल सुभाष की खबर न चल रही हो। अतुल सुभाष ने आत्महत्या करने से पहले एक 24 पन्नो का सुसाइड नोट व 90 मिनट का वीडियो भी सार्वजनिक किया है जिसे देख व पढ़कर कोई भी पत्थर दिल पिघल जायेगा। उक्त बातें दीवानी न्यायालय के अधिवक्ता विकास तिवारी ने कही।
साथ ही उन्होंने आगे कहा कि मैं पिछले कई वर्षों से दीवानी न्यायालय जौनपुर में वकालत प्रोफेशन कर रहा हूं। मैं व्यक्तिगत रूप से यह महसूस करता हूं कि सिस्टम में बहुत ढेर सारी खामिया है। अतुल सुभाष प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। कानून यह कहता भी है कि अतुल सुभाष का वीडियो व सुसाइड नोट अब dying declaration के रूप में माना जायेगा जिसकी व्याख्या Section 32(1) of the Indian Evidence Act, 1872 के अनुसार होगी। जिस तरह से देश में मैट्रीमोनियल डिस्प्यूट के नम्बर तेजी से बढ़ रहे हैं, यह बेहद चिंताजनक व विचारणीय विषय है।एनसीआरबी रिपोर्ट के अनुसार पुरूष सदस्य की आत्माहत्या का दर महिला की अपेक्षा तीन गुना ज्यादा है। इसका कारण भी खोजने की जरूरत है।
श्री तिवारी ने कहा कि अतुल सुभाष ने न्यायिक व्यवस्था पर जो प्रश्नचिन्ह लगाये हैं। उस पर भी सर्वोच्च न्यायालय और संसद को विचार करना चाहिए। जिस भी व्यक्ति ने दो-चार साल तक किसी न्यायिक कार्यवाही का सामना किया है, वह भी सिस्टम को बहुत नजदीक से महसूस करता होगा। इस विषय पर भी रिफरेण्डम प्रक्रिया की तरह विचार एकत्रित कर सुधार की आवश्यकता है। हमारे जनपद के फेमली कोर्ट की न्यायिक प्रक्रिया में सबसे बड़ी खामी यह है कि सर्वोच्च न्यायालय के गाइडलाइंस का अक्षरशः पालन नहीं किया जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने मेनटेनेंस से जुड़े मामलों के लिए यह आवश्यक किया है कि पति और पत्नी को अपनी तरफ से एक निर्धारित फार्मेट में एफिडेविट फाइल करना होगा, उसके बाद मेनटेनेंस का निर्धारण किया जायेगा लेकिन हमारे दीवानी न्यायालय में दाखिल होने वाले अस्सी प्रतिशत से अधिक एफिडेविट रजनीश बनाम नेहा के मामले में निर्धारित किये गये फार्मेट के अनुपालन में नहीं दाखिल होते हैं।
उन्होंने कहा कि न्यायालय को चाहिए कि जिन लिटिगेशन में सही एफिडेविट फार्मेट नहीं फाइल किया जा रहा है, उसकी कार्यवाही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित विधि व्यवस्था के अनुपालन में करें। यदि कोई पक्षकार एफिडेविट में अपनी कुछ जानकारी छुपाता है तो न्यायालय द्वारा जानकारी होने पर उसके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही विधि व्यवस्था रजनीश नेहा और प्रियंका श्रीवास्तव के प्रकाश में अमल में लायी जाय। हमारे जनपद न्यायालय में सिस्टम की यह कमजोरी है कि बिना औपचारिकता और कोरम पूर्ण किये तृटिपूर्ण फाइलिंग भी हो जाती है। मैं उम्मीद करता हूं कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय अतुल सुभाष के प्रकरण में SUO MOTO लेते हुए न्याय करेगा।
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