सभी को भुगतना होता है कर्म का फल
अम्बेडकरनगर। 22 जनवरी से शुरू ग्राम अतरौरा में एडवोकेट शिव कुमार त्रिपाठी हुई श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन कथाकार डॉ. कौशलेंद्र महराज ने श्रीमद् भागवत कथा का संक्षिप्त में श्रोताओं को सार बताया। अपनी अमृतमयी वाणी से कथा का वाचन शुरू करते हुए कहा कि भागवत अवरोध मिटाने वाली उत्तम अवसाद है। भागवत का आश्रय करने वाला कोई भी दुखी नहीं होता है। भगवान शिव ने शुकदेव बनकर सारे संसार को भागवत सुनाई है। श्रोताओं को कर्मों का सार बताते हुए कहा कि अच्छे और बुरे कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है। उन्होंने भीष्म पितामह का उदाहरण देते हुए कहा कि भीष्म पितामह 6 महीने तक बाणों की शैय्या पर लेटे थे। जब भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर लेटे थे तब वे सोच रहे थे कि मैंने कौन सा पाप किया है जो मुझे इतने कष्ट सहन करना पड़ रहा है। उसी वक्त भगवान कृष्ण भीष्म पितामह के पास आते हैं। तब भीष्म पितामह कृष्ण से पूछते हैं कि मैंने ऐसे कौन से पाप किये हैं कि बाणों की शैय्या पर लेटा हूं पर प्राण नहीं निकल रहे हैं। तब भगवान कृष्ण ने भीष्म पितामह से कहा कि आप अपने पुराने जन्मों को याद करो और सोचो कि आपने कौन सा पाप किया है? भीष्म पितामह बहुत ज्ञानी थे। उन्होंने कृष्ण से कहा कि मैंने अपने पिछले जन्म में रतीभर भी पाप नहीं किया है। इस पर कृष्ण ने उन्हें बताते हुए कहा कि पिछले जन्म में जब आप राजकुमार थे और घोड़े पर सवार होकर कहीं जा रहे थे। उसी दौरान आपने एक नाग को जमीन से उठाकर फेंक दिया तो कांटों पर लेट गया था पर 6 माह तक उसके प्राण नहीं निकले थे। उसी कर्म का फल है जो आप 6 महीने तक बाणों की शैय्या पर लेटे हैं। इसका मतलब है कि कर्म का फल सभी को भुगतना होता है इसलिए कर्म करने से पहले कई बार सोचना चाहिए।
अम्बेडकरनगर। 22 जनवरी से शुरू ग्राम अतरौरा में एडवोकेट शिव कुमार त्रिपाठी हुई श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन कथाकार डॉ. कौशलेंद्र महराज ने श्रीमद् भागवत कथा का संक्षिप्त में श्रोताओं को सार बताया। अपनी अमृतमयी वाणी से कथा का वाचन शुरू करते हुए कहा कि भागवत अवरोध मिटाने वाली उत्तम अवसाद है। भागवत का आश्रय करने वाला कोई भी दुखी नहीं होता है। भगवान शिव ने शुकदेव बनकर सारे संसार को भागवत सुनाई है। श्रोताओं को कर्मों का सार बताते हुए कहा कि अच्छे और बुरे कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है। उन्होंने भीष्म पितामह का उदाहरण देते हुए कहा कि भीष्म पितामह 6 महीने तक बाणों की शैय्या पर लेटे थे। जब भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर लेटे थे तब वे सोच रहे थे कि मैंने कौन सा पाप किया है जो मुझे इतने कष्ट सहन करना पड़ रहा है। उसी वक्त भगवान कृष्ण भीष्म पितामह के पास आते हैं। तब भीष्म पितामह कृष्ण से पूछते हैं कि मैंने ऐसे कौन से पाप किये हैं कि बाणों की शैय्या पर लेटा हूं पर प्राण नहीं निकल रहे हैं। तब भगवान कृष्ण ने भीष्म पितामह से कहा कि आप अपने पुराने जन्मों को याद करो और सोचो कि आपने कौन सा पाप किया है? भीष्म पितामह बहुत ज्ञानी थे। उन्होंने कृष्ण से कहा कि मैंने अपने पिछले जन्म में रतीभर भी पाप नहीं किया है। इस पर कृष्ण ने उन्हें बताते हुए कहा कि पिछले जन्म में जब आप राजकुमार थे और घोड़े पर सवार होकर कहीं जा रहे थे। उसी दौरान आपने एक नाग को जमीन से उठाकर फेंक दिया तो कांटों पर लेट गया था पर 6 माह तक उसके प्राण नहीं निकले थे। उसी कर्म का फल है जो आप 6 महीने तक बाणों की शैय्या पर लेटे हैं। इसका मतलब है कि कर्म का फल सभी को भुगतना होता है इसलिए कर्म करने से पहले कई बार सोचना चाहिए।
कथा श्रवण करने से मिट जाते हैं दुख और पाप : कौशलेंद्र महराज
भागवत भाव प्रधान और भक्ति प्रधान ग्रंथ है। भगवान पदार्थ से परे हैं, प्रेम के अधीन है। प्रभु को मात्र प्रेम ही चाहिए। अगर भगवान की कृपा दृष्टि चाहते हैं तो उसको सच्चाई की राह पर चलना चाहिए। भगवान का दूसरा नाम ही सत्य है। सत्यनिष्ठ प्रेम के पुजारी भक्त भगवान के अति प्रिय होते हैं। कलयुग में कथा का आश्रय ही सच्चा सुख प्रदान करता है। कथा श्रवण करने से दुख और पाप मिट जाते हैं। सभी प्रकार के सुख एवं शांति की प्राप्ति होती है। भागवत कलयुग का अमृत है और सभी दुखों की एक ही औषधि भागवत कथा है। कौशलेंद्र महराज ने उपस्थित सभी श्रोताओं से कहा कि इसलिए जब मौका मिले तब कथा सुनो और भगवान का भजन करो। अच्छे या बुरे कर्मों का फल हमें जरूर भुगतना पड़ता है। जब हम स्वयं से पहले दूसरो की चिंता करते हैं अपना पेट भरने से पहले दूसरो का पेट भरते हैं तब भगवान सबसे ज्यादा खुश होते हैं। ईश्वर ने जिन्हें सक्षम बनाया हैं उन्हें दान धर्म सेवा अवश्य करनी चाहिए। कथा में श्रद्धालु ने खूब आनंद लिया। मुख्य यज्ञाचार्य ज्योतिष गुरु पंडित अतुल शास्त्री से विधिवत कर्मकांड सम्पन्न कराया।
भागवत भाव प्रधान और भक्ति प्रधान ग्रंथ है। भगवान पदार्थ से परे हैं, प्रेम के अधीन है। प्रभु को मात्र प्रेम ही चाहिए। अगर भगवान की कृपा दृष्टि चाहते हैं तो उसको सच्चाई की राह पर चलना चाहिए। भगवान का दूसरा नाम ही सत्य है। सत्यनिष्ठ प्रेम के पुजारी भक्त भगवान के अति प्रिय होते हैं। कलयुग में कथा का आश्रय ही सच्चा सुख प्रदान करता है। कथा श्रवण करने से दुख और पाप मिट जाते हैं। सभी प्रकार के सुख एवं शांति की प्राप्ति होती है। भागवत कलयुग का अमृत है और सभी दुखों की एक ही औषधि भागवत कथा है। कौशलेंद्र महराज ने उपस्थित सभी श्रोताओं से कहा कि इसलिए जब मौका मिले तब कथा सुनो और भगवान का भजन करो। अच्छे या बुरे कर्मों का फल हमें जरूर भुगतना पड़ता है। जब हम स्वयं से पहले दूसरो की चिंता करते हैं अपना पेट भरने से पहले दूसरो का पेट भरते हैं तब भगवान सबसे ज्यादा खुश होते हैं। ईश्वर ने जिन्हें सक्षम बनाया हैं उन्हें दान धर्म सेवा अवश्य करनी चाहिए। कथा में श्रद्धालु ने खूब आनंद लिया। मुख्य यज्ञाचार्य ज्योतिष गुरु पंडित अतुल शास्त्री से विधिवत कर्मकांड सम्पन्न कराया।
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