जौनपुर। नगर के सिद्धार्थ उपवन में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कॉन) जौनपुर द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के पंचम दिवस पर भक्तिमय वातावरण चरम पर पहुंच गया। कथा व्यास कमल लोचन प्रभु जी (अध्यक्ष, इस्कॉन मीरा रोड-मुंबई एवं वापी-गुजरात) ने भगवान श्रीकृष्ण की लीला का ऐसा जीवंत वर्णन किया, जिसने श्रोताओं के मन को ईश्वर के प्रति भक्ति और समर्पण से भर दिया।
कथा व्यास ने कहा वेदान्त का निष्कर्ष इस प्रकार है। मुख्यतः जीवों की दो श्रेणियाँ हैं, क्षर और अक्षर। क्षर सामान्य जीव हैं और अक्षर परमेश्वर है। परमेश्वर को क्षर जीवों द्वारा तीन विभिन्न अवस्थाओं में अनुभव किया जाता है। ये अवस्थाएँ हैं (1) निराकार ब्रह्म (2) अन्तर्यामी परमात्मा और (3) परम प्रभु भगवान। इस अनुभूति को एक पर्वत को देखने के उदाहरण से वर्णित किया जा सकता है। जब हिमालय पर्वत को बहुत दूर से देखा जाता है, तो वह एक बड़े बादल के समान प्रतीत होता है। जब कोई और भी निकट जाता है, तो वह एक बड़ी पहाड़ी भूमि जैसा प्रतीत होता है, लेकिन जब कोई वास्तव में उस क्षेत्र में प्रवेश करता है, तो वह हिमालय को उसके संपूर्ण प्राकृतिक सौंदर्य के साथ देखता है, जिसमें सभी जीव निवास करते हैं। इसी प्रकार यदि वेदान्त का अध्ययन किसी की एबीसीडी शैक्षणिक योग्यता के अनुसार किया जाए, तो वह परम सत्य को निराकार ब्रह्म या हमारे इन्द्रिय ज्ञान के ठीक विपरीत जान सकता है। जब वेदान्त का अध्ययन योगी की दृष्टि से किया जाता है, जिसने इन्द्रिय-भोग में पूर्णतः विराम ले लिया है, तो परमसत्य परमात्मा के द्वारा स्वयं में ही प्रत्यक्ष हो जाता है। परन्तु इन सबसे बढ़कर जब वेदान्त का अध्ययन श्री व्यासदेव (जो भगवान के शक्ति अवतार हैं) की दृष्टि से किया जाता है, जो वेदान्त सूत्रों और उसके व्याख्या-ग्रन्थ श्रीमद्भागवतम् के मूल संकलनकर्ता हैं, तो परमसत्य उनके सारभूत रूप या परम सत्य में प्रकट होता है । वेदान्त सूत्र का आरम्भ "जन्माद्यस्य जथा" सूत्र से होता है और इसी सूत्र के साथ वास्तविक भाष्य 'श्रीमद्भागवतम्' भी आरम्भ होता है। श्रीमद्भागवतम् में सामान्य वेदों के चार मुख्य सिद्धांतों अर्थात् धार्मिकता का अभ्यास, आर्थिक परिस्थितियों की योजना, इन्द्रिय-इच्छा की पूर्ति और अंत में मानसिक चिन्तन द्वारा मोक्ष प्राप्ति को सावधानीपूर्वक छोड़ दिया गया है। वेदान्त सूत्र और श्रीमद्भागवतम् एक ही वस्तु हैं और इनका उद्देश्य भगवद्गीता में पुरुषोत्तम योग के अध्याय में बताया गया है। इसलिए एक पूर्ण वेदान्ती श्री कृष्ण का भक्त है। निराकार ब्रह्म परमपुरुष का चमकता हुआ तेज है, जैसे अग्नि के लिए प्रकाश है। पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण स्वयं अग्नि हैं, इसलिए ब्रह्म और परमात्मा श्री कृष्ण के ही अंश हैं, और यही वेदान्त सूत्र के महान दर्शन का निर्णय है - जिसे भगवद्गीता के साथ-साथ पूरी दुनिया में बहुत अधिक पसंद किया जाता है। आज कथा के यजमान कुमार प्रिंस और मनीषा देवी रही। संयोजन डा. क्षितिज शर्मा ने सभी भक्तजनों से अपील की है कि वे कथा के शेष दिनों में भी सम्मिलित होकर भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करें और उनके दिव्य संदेशों को अपने जीवन में अपनाएं।
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