खुटहन, जौनपुर। बीरी समसुद्दीनपुर गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में व्यास पीठ से श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कथा वाचक धर्मराज महराज ने कहा कि गृहस्थ आश्रम में रहकर जो धर्मपरायण और सदाचारी होते हैं उन्हें सद्गुणों से युक्त सेवाभावी और आज्ञाकारी संतान की प्राप्ति होती है। इसका उल्टा यदि माता पिता अधर्मी और दुराचारी हैं तो उनकी संतानें वैसे ही राक्षसी प्रवृत्ति की पैदा होती हैं।जो पूरे कुल का सर्वनाश कर देती है।
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श्री महराज ने भगवान गणेश और श्रीराम के प्राकट्य का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने राक्षस योनि में जन्म लेने वाले कई असुरों का उदाहरण भी प्रस्तुत किया। आगे कहा कि यह मानव जीवन चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद बड़े पुण्य कर्म के प्रतिफल स्वरूप मिला है। इसे व्यर्थ न जाने दें। जीवन की असली सार्थकता उस परम परमात्मा को प्राप्त करना है। लेकिन मानव सांसारिक सुख काम,क्रोध, मद,मोह और लोभ में पड़कर जीवन के मूल को भुला दे रहा है। यही उसके कष्टों का कारण है। मानव गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए सत्य की राह चलकर ईश्वर का नियमित स्मरण करे तो इहलोक से मुक्ति आसानी से मिल जायेगी। अन्यथा फिर से चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ेगा। इस मौके पर राम आश्रय उपाध्याय, सुभाष उपाध्याय, पुरुषोत्तम, सत्येन्द्र सिंह, सुधाकर सिंह, वंशराज राजभर, रामलवट यादव आदि मौजूद रहे।