सुशील स्वामी @ जौनपुर। प्रतिबंधित चीनी मांझा एक बार फिर मौत बनकर सामने आया है। जौनपुर में बाइक से जा रहे एक शिक्षक की गला कटने से हुई दर्दनाक मौत ने पूरे प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में चिंता बढ़ा दी है। यह घटना अकेली नहीं है। दिल्ली, मुंबई, इंदौर, पटना, वाराणसी, प्रयागराज सहित देश के दर्जनों शहरों से हर साल ऐसे हादसों की खबरें आती हैं जहाँ तेज़ धार वाले चीनी मांझे से लोगों के गले, चेहरे, कान और नाक गंभीर रूप से कट जाते हैं। कई मौकों पर जान तक चली जाती है।
बता दें कि केंद्र सरकार ने चीनी मांझे की बिक्री और उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया है। इसके बावजूद यह मांझा खुले बाजारों में पैकेटबंद मिल रहा है। कई दुकानों पर इसे चोरी-छिपे बेचा जाता है जबकि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी इसकी उपलब्धता की शिकायतें लगातार मिलती रहती हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि पर्व-त्योहारों, विशेष रूप से खिचड़ी के दौरान इसकी मांग अचानक बढ़ जाती है और आपूर्ति भी उसी अनुपात में जारी रहती है। इससे दुर्घटनाओं की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।देश भर में लगातार बढ़ रहे हादसे
दिल्ली में कई बाइक सवार युवकों की मौत। मुंबई में स्कूटी सवार युवक का गला चीरा। इंदौर में महिला का कान आधा उखड़ गया। पटना में दो बच्चों के चेहरे बुरी तरह कट। यूपी के कई जिलों—जौनपुर, रायबरेली, कानपुर, वाराणसी, प्रयागराज में लगातार घायलों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह स्पष्ट है कि चीनी मांझा अब स्थानीय समस्या नहीं, बल्कि राष्ट्रीय जनसुरक्षा का गंभीर खतरा बन चुका है।
प्रशासन की कार्यवाही केवल खानापूर्ति?
लोगों का आरोप है कि शासन-प्रशासन की ओर से समय-समय पर छापेमारी अवश्य होती है लेकिन यह केवल दिखावा साबित होती है। दुकानों पर बिक्री बंद नहीं होती और सप्लाई चेन पर कोई ठोस निगरानी नहीं की जाती। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि प्रतिबंधित होने के बावजूद यदि यह मांझा बाजार में मिल रहा है तो निस्संदेह कहीं न कहीं प्रशासनिक लापरवाही या मिलीभगत का हिस्सा है।
आखिर कितनी मौतें पर्याप्त होंगी?
विशेषज्ञों और आम जनता की ओर से एक बड़ा प्रश्न उठ रहा है: जब चीनी मांझे से हर साल लोगों की जान जा रही है, तब इसे पूरी तरह रोकना इतना मुश्किल क्यों है? क्या कागज़ी कार्रवाई से जनहानि का भय कम हो जाएगा? क्या बाजार का मुनाफा नागरिकों की जिंदगी से अधिक महत्वपूर्ण हो गया है
और सबसे बड़ा सवाल—क्या प्रशासन तब जागेगा, जब मौतों की संख्या और लंबी हो जाएगी? एक जानकारी यह भी रही। सन 2020 में सहदेव मिश्रा सिटी मजिस्ट्रेट जौनपुर रहे हैं। उन्होंने एक अभियान चाइनीस माझे को लेकर के चलाया था। शहर में तमाम छापेमारी की थी जिसमें काफी समय तक बेचने वाले इधर-उधर भागते फिर रहे थे उसके बाद कोई विशेष अभियान चला नहीं। चीनी मांझा अमानवीय खेल बन चुका है। यह अब सिर्फ पतंग उड़ाने का साधन नहीं, बल्कि जानलेवा हथियार है। जरूरत इस बात की है कि इसकी बिक्री, सप्लाई, भंडारण और ऑनलाइन उपलब्धता पर कठोरतम कार्रवाई की जाए। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक सड़क पर चलने वाले हर व्यक्ति का जीवन खतरे में रहेगा।
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