जौनपुर। मुहर्रम की 24 तारीख को कलापुर गांव में इमाम हुसैन अ.स. के पुत्र हजरत इमाम जैनुल आब्दीन अलैहिस्सलाम की शहादत की याद में विशाल जुलूस निकाला गया। इस अवसर पैगंबर साहब के नवासे व उनके साथियों की कुर्बानी की गाथा जुलूस में शामिल हरेक शख्स की आंखों से निकल रहे आंसूओं के जरिये बयां हो रही थी।
जुलूस निकलने से पहले कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सिराज मेंहदी ने मर्सियाखानी की। जिससे इमामबारगाह में मौजूद अजादारों की आंखों से आंसूओं का सैलाब उमड़ पड़ा। मौलाना सैय्यद अम्बर आब्दी ने कहा कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सुपुत्र हजरत इमाम अली इबे हुसैन जैनुल आब्दीन की शहादत की तारीख है। इमाम अली इबे हुसैन के कई उपनाम थे जिनमें सज्जाद, सैयदुस्साजेदीन और जैनुल आबेदीन प्रमुख हैं। उनकी इमामत का काल कर्बला की घटना और इमाम हुसैन अ.स. की शहादत के बाद शुरु हुआ। इस काल की ध्यानयोग्य विशेषताएं हैं। इमाम सज्जाद ने इस काल में अत्यंत अहम और निर्णायक भूमिका निभाई। कर्बला की घटना के समय उनकी उम्र 24 साल थी और इस घटना के बाद वे 34 साल तक जीवित रहे। इस अवधि में उन्होंने इस्लामी समाज के नेतृत्व की जिम्मेदारी संभाली और विभिन्न मार्गों से अत्याचार व अज्ञानता के प्रतीकों से मुकाबला किया।
मौलाना नैय्यर जलालपुरी ने तकरीर करते हुए कहा कि हजरत इमाम जैनुल आब्दीन अ.स. पर जालिम यजीदियों ने कर्बला के वाकये के बाद जुल्म की इंतेहा कर दी। इमाम को बंदी बनाकर उनको तौको जंजीर से जकड़ दिया गया। ये मसाएब सुनकर लोग दहाड़े मारकर रोने लगे। मजलिस के बाद इमाम सज्जाद का ताबूत व अलम का जुलूस निकला, जिसके हमराह बाराबंकी, जलालपुर व अन्य जिलों की आयी मातमी अंजुमनों ने नौहाखानी की, जुलूस देर रात्रि में हुआ। इस मौके पर जरगाम हैदर, सादिक रिजवी , आरिफ हुसैनी, हसनैन कमर दीपू, रिजवान हैदर राजा, सोनू के साथ भारी संख्या में लोग मौजूद रहे।
जुलूस निकलने से पहले कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सिराज मेंहदी ने मर्सियाखानी की। जिससे इमामबारगाह में मौजूद अजादारों की आंखों से आंसूओं का सैलाब उमड़ पड़ा। मौलाना सैय्यद अम्बर आब्दी ने कहा कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सुपुत्र हजरत इमाम अली इबे हुसैन जैनुल आब्दीन की शहादत की तारीख है। इमाम अली इबे हुसैन के कई उपनाम थे जिनमें सज्जाद, सैयदुस्साजेदीन और जैनुल आबेदीन प्रमुख हैं। उनकी इमामत का काल कर्बला की घटना और इमाम हुसैन अ.स. की शहादत के बाद शुरु हुआ। इस काल की ध्यानयोग्य विशेषताएं हैं। इमाम सज्जाद ने इस काल में अत्यंत अहम और निर्णायक भूमिका निभाई। कर्बला की घटना के समय उनकी उम्र 24 साल थी और इस घटना के बाद वे 34 साल तक जीवित रहे। इस अवधि में उन्होंने इस्लामी समाज के नेतृत्व की जिम्मेदारी संभाली और विभिन्न मार्गों से अत्याचार व अज्ञानता के प्रतीकों से मुकाबला किया।
मौलाना नैय्यर जलालपुरी ने तकरीर करते हुए कहा कि हजरत इमाम जैनुल आब्दीन अ.स. पर जालिम यजीदियों ने कर्बला के वाकये के बाद जुल्म की इंतेहा कर दी। इमाम को बंदी बनाकर उनको तौको जंजीर से जकड़ दिया गया। ये मसाएब सुनकर लोग दहाड़े मारकर रोने लगे। मजलिस के बाद इमाम सज्जाद का ताबूत व अलम का जुलूस निकला, जिसके हमराह बाराबंकी, जलालपुर व अन्य जिलों की आयी मातमी अंजुमनों ने नौहाखानी की, जुलूस देर रात्रि में हुआ। इस मौके पर जरगाम हैदर, सादिक रिजवी , आरिफ हुसैनी, हसनैन कमर दीपू, रिजवान हैदर राजा, सोनू के साथ भारी संख्या में लोग मौजूद रहे।
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