कैलाश सिंह
जौनपुर। जिले की राजनीतिक पिच पर डेढ़ दशक पूर्व आये धनंजय सिंह ने यहां के सियासी समीकरण को बदलकर रख दिया है। 2009 के आम चुनाव में बसपा को पहली बार यहां से संसदीय सीट धनंजय के कारण मिली। 2002 में राजनीतिक पिच पर कदम रखने वाले धनंजय पहले ही मैच में मंजे हुए खिलाड़ी के रूप में धुरंधर को धूल चटा दी। इसके बाद वह नए नए कीर्तिमान बनाते चले गए। यहां के सियासी मैदान की हालत ये हो गयी है कि प्रत्याशी ही नहीं बल्कि छोटे बड़े दलों के नेता भी धनंजय को ध्यान में रखकर उम्मीदवार उतारते हैं। इस बार के संसदीय चुनाव में भी किसी गठबंधन से उनका आना तय माना जा रहा है।
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| Dhananjay Singh |
वर्ष 2002 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में रारी विधानसभा क्षेत्र से लोक जनशक्ति पार्टी के समर्थन से निर्दल विधायक चुने जाने के बाद से सियासी रणक्षेत्र में धनंजय सिंह ने वापस मुड़कर नहीं देखा। राजनीति में अपना वर्चस्व बरकार रखने के लिए वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में जौनपुर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस समर्थित लोक जनशक्ति पार्टी के प्रत्याशी के रूप में किस्मत आजमाई। इस चुनाव में धनंजय सिंह को पराजय का सामना करना पड़ा लेकिन वह कई अन्य धुरंधरों के हार का कारण भी बने । वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने जनता दल यूनाइटेड का दामन थामा औऱ रारी विधानसभा में दोबारा जीत दर्ज की। वर्ष 2008 में उन्होंने बसपा का दामन थामा और 2009 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करते हुए पहली बार सांसद चुने गए लेकिन अपनी ही छोड़ी गई सीट ओर उन्होंने अपने पिता राजदेव सिंह को विधायक बना दिया।
वर्ष 2012 में नए परिसीमन के अनुसार रारी विधानसभा सीट को मल्हनी का नाम दे दिया गया था। इस दौरान बेलांव दोहरा हत्याकांड के मामले में धनंजय सिंह सलाखों के पीछे थे। मल्हनी सीट से पत्नी डॉ. जागृति सिंह को चुनावी मैदान में उतारा परन्तु सफलता नहीं मिली। निर्दल प्रत्याशी के तौर पर जागृति सिंह दूसरे स्थान पर रहीं।वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में धनंजय सिंह ने निर्दल प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे। इस चुनाव में भी उन्हें पराजय मिली लेकिन कई अन्य दलों के उम्मीदवारों का समीकरण बिगाड़ दिया । हालांकि उनकी आंधी मोदी लहर के आगे फीकी पड़ गयी।इसी तरह 2017 के विधानसभा चुनाव में मल्हनी सीट पर निषाद पार्टी से एक बार फिर धनंजय सिंह में जोर आजमाइश की लेकिन परिणाम उनके पक्ष में नहीं रहे।
धनंजय सिंह राजनीतिक पिच पर ऐसे खिलाड़ी हैं जो टेस्ट मैच के साथ साथ वन-डे और ट्वेंटी-ट्वेंटी भी खेलने से नहीं चूकते हैं। यही कारण है कि जौनपुर में लगातार सियासी उठापटक का दौर जारी है। वर्तमान समय में इनपर हर दलों की नज़र है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जौनपुर संसदीय सीट पर धनंजय के बगैर गठबंधन से लड़कर कोई अन्य झंडा नहीं लहरा सकता है। कांग्रेस की भी नज़र किसी मुस्लिम उम्मीदवार को उतारने पर लगी है क्योंकि अलोसंख्यक उम्मीदवार ही खासकर मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर खींचकर के चुनावी परिणाम में उलटफेर कर सकता है। उम्मीदवार के तौर पर पूर्व विधायक नदीम जावेद का पलड़ा भारी नज़र आ रहा है। वर्ग विशेष की मतदाता संख्या पर भी नज़र डालें तो सदर विधानसभा में ही लगभग 70,000 वोटर हैं जबकि अन्य चार विधानसभाओं में भी लगभग 20- 20 हज़ार मतदाता हैं। जब धनंजय सिंह और नदीम जावेद आमने सामने होंगे तब लड़ाई एनडीए बनाम कांग्रेस में होगी बाकी अन्य दल अपने हिस्से के वोटर लेकर रनर की भूमिका में होंगे।
लेखक — राष्ट्रीय सहारा गोरखपुर यूनिट में समाचार सम्पादक हैं)
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