Video : Jaunpur Live : राजनीति के धनंजय


टीम जौनपुर लाइव
पूर्वांचल के दिग्गज नेता धनंजय सिंह का राजनीतिक सफर
चुनावी मौसम हो और पूर्वांचल के दिग्गज नेताओं की चर्चा न हो यह तो बेमानी होगी। कभी जीवनदान के लिए एक-एक वोट दान के रुप में मांगने वाले बाहुबली पूर्व सांसद धनंजय सिंह सियासत का ऐसा चेहरा है जिस पर तकरीबन सभी दलों की निगाह उनकी हर सियासी चाल पर टिकी नजर आती है। हो भी क्यों न जिले ही नहीं पूरे पूर्वांचल में धनंजय सिंह एक ऐसा चेहरा बनकर उभरे है जो किसी भी समय सियासी हवा को अलग रुख देने की महारत रखते है। जहां तक पूर्व सांसद के सियासी पारी के आगाज की बात है तो सन् 2000 में उस समय उन्होंने अपनी सियासी पारी की शुरुआत की थी जब पुलिस पूरी सरगर्मी से कई मामलों में उनके पीछे पड़ी हुई थी। तत्कालीन रारी विधानसभा में निर्दल प्रत्याशी के तौर पर भाग्य आजमाने के साथ जीवन बचाने के लिए धनंजय सिंह ने ताल ठोक दी और उनका यह कदम उनके जीवन के लिए संजीवनी भी साबित हुआ। वोट दान, जीवन दान का नारा इस कदर भाया कि वे रारी विधानसभा से चुनावी मैदान मारने में न सिर्फ सफल हुए बल्कि तेज बहादुर सिंह के बाद दूसरे निर्दल विधायक होने का गौरव भी हासिल किया।




आपराधिक छवि से निकलकर माननीय बनने के बाद धनंजय सिंह ने सियासत के मैदान में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यह बात दीगर है कि निर्दल प्रत्याशी के तौर पर ही उन्होंने 2004 के लिए लोकसभा के लिए ताल ठोक दी लेकिन यहां उन्हें सफलता का स्वाद चखने को नहीं मिला लेकिन इतना जरुर था कि उन्होंने दिग्गजों के सियासी दांव की चूले हिलाकर रख दी और रनर के तौर पर हर किसी को इस बात का आभास करा दिया कि आने वाले दिनों में वे और लम्बी पारी खेलने की तैयारी कर रहे है। दूसरी बार फिर उन्होंने रारी विधानसभा को ही अपना कार्यक्षेत्र चुना और एक बार फिर लोजपा से ताल ठोक दी। भारतीय जनता पार्टी की गठबंधन पार्टी होने के नाते उन्हें इसका लाभ भी मिला और पुन: वह मैदान मारने में सफल रहे।
2009 के लोकसभा चुनाव में धनंजय सिंह का कद सियासत के कुरुक्षेत्र में इतना बढ़ चुका था कि सभी पार्टियां उन्हें अपने पाले में करने के लिए आतुर नजर आ रही थी लेकिन उन्होंने बसपा को चुना और बसपा से ही लोकसभा चुनाव में एक बार फिर सदर लोकसभा सीट से लड़ गये। इस बार उन्होंने समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता पारसनाथ यादव को शिकस्त देकर पहली बार जिले में बसपा का परचम लहराने का काम किया। विधानसभा सदस्य रहते हुए लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उन्होंने विधानसभा से न सिर्फ इस्तीफा दिया बल्कि अपने पिता राजदेव सिंह को टिकट दिलाकर उनके नाम के आगे भी माननीय जोड़ने का काम किया। हालांकि विरोधियों ने पीछा नहीं छोड़ा था और एक के बाद एक कई साजिशों का शिकार भी इन्हें बनाया गया लेकिन इन्होंने जेल में रहते हुए 2012 में रारी विधानसभा का अस्तित्व समाप्त होकर मल्हनी विधानसभा के रुप में अस्तित्व में आयी नई विधानसभा से अपनी पत्नी डा. जागृति सिंह को चुनाव मैदान में उतारा लेकिन वो सपा के कद्दावर नेता पारसनाथ यादव से काफी कम मतों से चुनाव मैदान हार गयी।
जेल से छूटने के बाद 2014 में इन्होंने एक बार फिर लोकसभा में निर्दल प्रत्याशी के तौर पर ताल ठोक दी लेकिन इस बार माहौल बीजेपी के पक्ष में पूरी तरह ढल चुका था और बड़े-बड़े कद्दावरों की तरह धनंजय सिंह को भी चुनावी रण में मात खानी पड़ी और 2017 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर मल्हनी से निषाद पार्टी से भाग्य आजमाया लेकिन एक बार फिर सपा के ही कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री पारसनाथ यादव से मात खा गये। बावजूद इसके आज भी धनंजय सिंह जिले के अलावा पूरे पूर्वांचल में अपनी एक खासी सियासी पैठ रखते है और ऐसा माना जाता है कि कुछ खास तबके के मतदाताओं की इनकी पूरी तरह से पकड़ भी बनी हुई है जिसके चलते ये चुनाव मैदान में बड़ा उलटफेर करने के लिए तैयार रहते है।

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