#Jaunpur Live : स्वयं भू है दियावांनाथ महादेव का शिवलिंग

#TeamJaunpurLive


बरसठी (जौनपुर)- धार्मिक आस्था का प्रतीक दियावां महादेव का मंदिर प्राचीन काल से ही सिर्फ क्षेत्र के लिए नही बल्कि अन्य जनपदों के लोगो के आराधना के केंद्र बना हुआ है। यह भव्य मन्दिर दताव अरुआवा मार्ग पर बसुही नदी से सटा है।बसुही नदी मंदिर की छटा बिखरने में चार चाँद लगा रहा है। 

श्रुत्रो के अनुसार त्रेता युग में भगवान श्रीरामचन्द्र के अनुज शत्रुध्न अयोध्या से बाणासुर नामक राक्षस पर विजय प्राप्त करने के लिए इस परिसर में पधारे। यह क्षेत्र भयंकर जंगल से आच्छादित था। बाणासुर नामक राछस इसी जंगल मे निवास करता था। बाणासुर से कई महीने युद्ध करने के बाद भी युवराज शत्रुध्न उस पर विजय प्राप्त नही कर सके ।वह इतना शक्तिशाली था कि शत्रुध्न को उसकी समस्त सेना के साथ मूर्छित कर दिया।जब यह दूतो ने अयोध्या के राजा भगवान श्रीराम को दी तब वे अपने गुरु वशिष्ठ के साथ यहा पहुँचे जहाँ शत्रुध्न अपनी सारी सेना के साथ बाणासुर के कोप से अचेतावस्था में थे।भगवान राम के प्रताप से शत्रुध्न अपनी समस्त सेना के साथ चेतावस्था में हो गए ।इसके बाद राम ने बाणासुर पर विजय प्राप्त आने का उपाय अपने गुरु से पूछा गुरु वशिष्ठ ने बताया कि शत्रु पर विजय प्राप्त करने की लिए सर्वप्रथम भगवान शिव का लिंग स्थापित करना पड़ेगा ।इस पर भगवान राम की उपस्थिति उनके छोटे भाई शत्रुध्न ने यहाँ (दियावां) में एक शिवलिंग की स्थापना की जिसका तात्कालीन नाम दीनानाथ पड़ा और उसी के नाम से प्रसिद्ध हो गया।हजारों-हजारों वर्ष की मूर्ती होने कारण पाताल भेदी हो गई।कई युगों के बाद अब से पांच से छः सौ वर्ष पूर्व इस जंगल परिसर में बेलौनाकला गांव के निवासी सूबेदार दुबे की गाय चरा करती थी।वही शिवलिंग बड़े-बडे घास के झुरमुट झाड़ियो के बीच था।वही पर शिवलिंग जो शत्रुध्न द्वारा स्थापित किया गया था।वहाँ किसी की निगाह नही पहुचती थी। परंतु वह गाय चरते समय अपना दूध स्वंय गिरा देती थी। इस रहस्य को बहुत दिनों तक गाय के मालिक सूबेदार दुबे नही जान पाए ।एक दिन सयोगबश उन्होंने उस घास के झाड़ियो में छिपे शिवलिंग पर गाय का दूध गिराते हुए देखा तो आश्चर्य चकित हो गए और जब वहां जाकर देखा तो घास के झुरमुट में एक शिवलिंग दिखाई दिया,जो दूध से भीगा था। सूबेदार ने जाकर पूरी बाते गांव वालों को बताया जिस पर इसकी चर्चा पूरे क्षेत्र में हो गई इसके बाद पं.सूबेदार इस शिवलिंग की खुदाई करके अपने गांव बेलौनाकला ले जाना चाहते थे।परंतु कई दिनों तक खुदाई के बाद भी कार्य मे सफलता नही मिली। तब दियावां गांव के निवासी भगौती प्रसाद मिश्र (पण्डा) ने क्षेत्रके सहयोग से एक मंदिर का निर्माण कराना चाहते थे,जिज्ञासा वश शिवलिंग के बगल खुदाई का कार्य शुरू कराए जैसे-जैसे खुदाई नीचे बढ़ती गई, वैसे-वैसे शिवलिंग नीचे मोटा दिखाई पड़ा और उसके अंत का पता नही चल सका। यह खुदाई सात अरघा (योनी) तक कि गई ।तब रात को सभी भक्तों को भगवान शिव ने स्वप्न दिया कि मेरे आंतकी जिज्ञासा करना तुम लोगो के लिए निष्फल साबित होगा।इसलिए ऊपर के अरघे पर मंदिर बनाकर पूजा करो हम तुम्हारा कल्याण करेंगे और हमे दियावां महादेव के नाम से प्रसिद्धि मिले, तब से इस स्थान का नाम दियावां महादेव पड़ गया ।

इस मंदिर की मान्यता है कि जो भी मन से भगवान शिव की अराधना करेगा उसको मन वांछित फल मिलेगा। यहाँ हर सोमवार को मेला लगता है। व पूरे साल के सावन माह में भक्तो का ता-ता लगा रहता है। हजारों की सख्या में नर-नारी अपनी मिन्नते मांगने और मत्था टेकने दूरदराज से लोग आते है।
और नया पुराने

Contact us for News & Advertisement

Profile Picture

Ms. Kshama Singh

Founder / Editor

Mo. 9324074534