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#JaunpurLive : आस्था का अदभुत केन्द्र त्रिलोचन महादेव मंदिर


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रामाज्ञा यादव
जलालपुर, जौनपुर। उत्तर प्रदेश में अनेक शिवालय एवं मंदिर है जिनकी अपनी—अपनी ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व है ऐसा ही एक मंदिर है त्रिलोचन महादेव जो जौनपुर में स्थित है। आस्था का यह मंदिर अत्यंत ही दिव्य एवं कल्याणकारी है। यह मंदिर जौनपुर मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दक्षिण दिशा में जौनपुर—वाराणसी राजमार्ग पर जौनपुर के बाहरी परिधि के समीप में स्थित त्रिलोचन महादेव बाजार से सटे पूर्व दिशा में अवस्थित है।

मंदिर में विराजमान शिवलिंग क्षेत्रीय लोगों की आस्था का केन्द्र है। मंदिर में स्थापित देवाधिदेव त्रिपुरारी शंकर का शिवलिंग खुदाई के दौरान मिला था। एक जनश्रुति के अनुसार वहां पहले जंगल था इसलिए इसे पहले बनपुरवा कहा जाता था। समीपवर्ती गांव के चरवाहे इस जंगल में गाय चराने आते थे उन गायों में एक ऐसी गाय थी जो एक ही स्थान पर खड़ी हो जाती और उसके थन से अपने आप दूध गिरने लगता था। एक दिन चरवाहे ने देखा कि यह गाय यहीं पर रोज दूध गिराती है। उससे उस स्थान की खुदाई की तो शिवलिंग देख आश्चर्यचकित हो गया। शिवलिंग मिलने की खबर जंगल में आग की तरह फैल गयी। उसी दिन से लोग पूजन अर्चन शुरु कर दिये। ऐसा भी कहा जाता हैं कि भगवान ब्रह्मा के द्वारा यज्ञ के पश्चात यहां पर भगवान शिव प्रकट हुए थे। यह शिवलिंग पूरे भारत में दुर्लभ शिवलिंगों में से एक है। शिवलिंग के निचले भाग में शिव के मुख नाक आंख स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं और सिर की जगह पर शिवलिंग का रूप है।

एक दूसरी जनश्रुति के अनुसार रहटी गांव तथा डिंगुरपुर गांव के लोगों में मंदिर को लेकर सीमा विवाद उत्पन्न हो गया। कई दिनों तक पंचायत चलती रही लेकिन कोई निर्णय नहीं हो सका। अंत में यह निर्णय लिया गया कि अब भोलेनाथ ही इसका निर्णय करेंगे। पंचों के समक्ष गांव के लोगों ने मंदिर में अपना अपना ताला लगा दिया दूसरे दिन गांव के लोग इकट्ठा हुए और पंचों के समक्ष मंदिर का ताला खोला गया तो मंदिर में शिवलिंग रेहटी गांव की तरफ झुका हुआ था। तभी से यह शिवलिंग रेहटी गांव की तरफ झुका हुआ है। इस मंदिर का निर्माण कब हुआ था इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। यह मंदिर बहुत बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है। मंदिर की दीवारों पर लगे पत्थरों पर अद्भुद नक्काशी की गई है जो मंदिर की शोभा में चार चांद लगा देते हैं। मंदिर में नक्काशी तथा चित्रकारी उच्च कोटि की गई है जो वास्तुकला का अनुपम नमूना है। मंदिर परिसर में एक बहुत बड़ा तालाब अवस्थित है।

जनश्रुति के अनुसार इस तालाब के पानी का स्रोत सई और गोमती नदी के पावन संगम से मिला हुआ। इसी कारण यह तालाब कभी सूखता नहीं है। ऐसी मान्यता हैं कि इस तालाब में स्नान करने से असाध्य से असाध्य रोग तथा पुराना से पुराना चर्म रोग समाप्त हो जाता है। तालाब में रंग बिरंगी मछलियां भी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र बनी रहती है। वैसे तो यहां पर बारहों महीना भीड़ लगी रहती है और शिव भक्तों का आना जाना लगा रहता है लेकिन सोमवार के दिन मेला जैसा दृश्य दिखाई देता है। मंदिर में घण्टा घड़ियाल और हर—हर महादेव की गगनभेदी आवाजें हमेशा सुनाई देती है।

फागुन और सावन के महीने की शिवरात्रि को बहुत बड़ा मेला लगता है। सावन के महीने में कांवरियों की भारी भीड़ जमा होती है लोग जल चढ़ा चढ़ाते है और बड़े दूर-दूर से भक्तगण आते हैं मन्नत मांगते है। भोलेनाथ सबकी मुरादें पूरी करते है। मेले में भीड़ को देखते हुए सुरक्षा की दृष्टि से कई थानों की पुलिस तथा पीएसी लगायी जाती है। ऐतिहासिक मेले में किसी प्रकार की गड़बड़ी न हो। इसके लिए जगह-जगह पर सीसी कैमरे लगाए गये है। मंदिर परिसर के पास बने गोस्वामी धर्मशाला, यादव धर्मशाला, क्षत्रिय धर्मशाला तथा धोबी धर्मशाला इसकी शोभा में चार चांद लगा देते है। यह धर्मशाला पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं तथा शादी विवाह के लिए हमेशा उपलब्ध रहता है। 

यहां पर लग्न के दिनों में शादी विवाह मंदिर कमेटी की तरफ से सम्पन्न कराया जाता है। मंदिर के महन्त मुरलीधर गिरी द्वारा शादी का प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता है। त्रिलोचन महादेव मंदिर आस्था का प्रतीक होने के कारण इस स्थानीय कस्बे का नाम भी त्रिलोचन महादेव पड़ गया। 

मंदिर की देखरेख गोस्वामी समाज के लोग महंत मुरलीधर गिरी एवं कमेटी के पदाधिकारी एवं सदस्य अनुराग वर्मा, रवि शंकर सिंह, गुरु गोपाल सिंह, सुमित यादव, सोनू गिरी, झूल्लन गिरी, अजय गिरी, जय प्रकाश सिंह आदि लोगों का विशेष सहयोग तथा योगदान रहता है। मंदिर की देख—रेख, पूजा—पाठ, गोस्वामी समाज के लोगों द्वारा महंत मुरलीधर गिरी की सानिध्य में करते चले आ रहे है।

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