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जौनपुर। शहर के मोहल्ला चित्तरसारी में महान क्रांतिकारी मुज़तबा हुसैन के समाधी स्थल पर पुष्प अर्जित कर श्रद्धांजलि दी गयी। ज़िले का ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष का गौरवशाली इतिहास रहा है। सन 1857 से 1942 तक ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लगातार संघर्ष करते हुए भारत की आज़ादी के लिये हज़ारों-हज़ार लोगों ने अपनी जान की कुर्बानी दिया।उसी कड़ी में ग़दर पार्टी के सदस्य मुज़तबा हुसैन ने मुक्ति संघर्ष में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा किया।
मुज़तबा हुसैन सन 1914 में उत्तरी अमेरिका के शहर सैंमफांसिस्को में ग़दर पार्टी में शामिल होने के लिए गये। वहां उनको पार्टी नेतृत्व ने दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में स्थित भारती सैनिकों की छावनियों में जाकर सैनिक में देश भक्ति जगाने और ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए भेजा। सिंगापूर में इनके नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने विद्रोह शुरू किया। एक हफ्ते तक चला विद्रोह इतना ताकतवर था कि कई देशों की सेनाओं ने मिलकर विद्रोह का दमन कर दिया। वे बच निकले लेकिन चीन के रास्ते भागते समय 1915 में पकड़े गये। उनके ऊपर माडले षड्यंत्र का मुकदमा चला और फांसी की सज़ा हो गयी लेकिन बाद में फांसी की सज़ा आजीवन कारावास में बदल दी गयी। 1915 से 1934 तक देश—विदेश के विभिन्न जेलों में रहे। 30 जुलाई 1934 को फैज़ाबाद जेल से 19 साल बाद रिहा किया गया गया।1946 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने से पहले पुनः गिरफ्तार कर लिए गये और 1946 में जौनपुर जेल से रिहा किये गये और 3 अगस्त 1953 में इनकी मृत्यु हो गयी और इनको सदर इमामबारगाह बेगमगंज में दफन किया गया। ब्रिटिश साम्राज्यवादी शोषण के खिलाफ संघर्ष में उन्होंने अपने जीवन के 28 साल जेलों के अंदर बिताये। भारत की बहादुर जनता और इन क्रांतिकारियों के नेतृत्व में ब्रिटिश हुकूमत से 1947 में भारत स्वतंत्र हो गया। इस मौके पर इब्ने जाफर, सैय्यद कैसर रज़ा, इम्तियाज हुसैन, मोहम्मद तकी, मोहम्मद हैदर, सैय्यद सलमान रज़ा, मग्गन, जुल्फेकार हैदर, इरफान रज़ा, मोहम्मद शरीफ, इस्लाम, गुड्डू, संजय यादव, सुल्तान, कामरेड फ़ाज़ली, सीपीआई ज़िला महामंत्री श्यामबहादुर रघुवंशी आदि मौजूद रहे।
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