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वारिंद्र पाण्डेय
डोभी, जौनपुर। डोभी क्षेत्र के हरिहरपुर में स्वतः प्रगट हुए बेलनाथ मंदिर का शिवलिंग एवं साथ में स्थित देवी पार्वती का विग्रह क्षेत्रवासियों के लिए श्रध्दा व आस्था साकार होने का केन्द्र है। संस्कृत में बेलपत्र को विल्व पत्र कहते हैं।देवाधिदेव शंकर को विल्व पत्र अत्यंत प्रिय है। यह मंदिर जहां स्थित है वहां किसी समय बेल के जंगल हुआ करते थे। इस बेलपत्र के जंगल में शिवलिंग का स्वतः अवतरित होना ग्रामीणों के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। अतः उस समय के बुद्धजीवियों ने इस शिवलिंग का नामकरण बेलनाथ महादेव रख दिया। तब से लेकर आज तक पूरे सावन मास यहां जलाभिषेक एवं रुद्राभिषेक कर शिव के साथ शक्ति की एक साथ पूजा होती है।
इतिहास : बताया जाता हैं कि आज से लगभग सवा दो सौ वर्ष पूर्व जब बेल की झाडियों को साफ कर वहां खेत बनने के उद्देश्य से भूस्वामी फावड़ा चला रहा था कि अचानक काले रंग के पत्थर का शिवलिंग एवं नंदिस्वर दिखे। किसान के लिए यह अद्भुत आश्चर्य था। गांव वालों ने वह स्थान छोड़, शिवलिंग की पूजा अर्चना करना शुरू कर दिया।
आज से 100 वर्ष पूर्व गांव के बद्री प्रसाद बरनवाल ने यहां मंदिर एवं कुआं का निर्माण कराया था। कालांतर में उसी परिवार के बलरामदास बरनवाल ने मंदिर को भव्य बनवाया एवं अपनी पत्नी सत्यभामा के नाम कि 12 विश्वा जमीन बेलनाथ मंदिर के नाम कर दिया। जहां वाराणसी के एक ट्रेवेल व्यवसायी ने अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर पार्वती जी का मंदिर बनवाया। यहां शिवरात्रि को मेला लगता है।
मंदिर के पुजारी अशोक दुबे उर्फ गौरी बाबा ने बताया कि बाबा बेलनाथ मंदिर का गुम्बद स्वयं प्रकृति ने स्थापित किया है। मंदिर के उत्तर एवं दक्षिण दोनों दीवारों से सटा आम का विशाल वृक्ष गुम्बद कि तरह सैकड़ों वर्ष से खड़ा है। ऐसा अद्भुत मंदिर और कहीं नहीं हैं। यहां लोगों की हर मनोकामना भोलेनाथ पूरी करते हैं।
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