मीरगंज/जौनपुर। भगवान शिव के त्रिशूल पर बसे विश्व प्रसिद्घ अलौकिक नगर काशी को वाराणसी नाम प्रदान करने वाली वरुणा का उद्दम तीन जनपद के सरहद से हुआ है। जौनपुर, इलाहाबाद, प्रतापगढ़ की सीमा पर स्थित इनऊछ ताल के मैलहन झील से वरुणा नदी निकली हैं। जौनपुर के सैकड़ों गांवों को जीवन प्रदान करने वाली वरुणा नदी के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। उपेक्षा के कारण नदी का अस्तित्व खतरे में है।
जौनपुर जनपद के पश्चिमी छोर पर मुंगराबादशाहपुर से 12 किमी दूर प्रतापगढ़-इलाहाबाद की सीमा पर स्थित इनऊछ ताल के मैलहन से निकलकर वरुणा नदी 202 किमी दूरी तय करती है। जौनपुर होते हुए वाराणसी पहुंचती हैं। वाराणसी पहुंच अस्सी नदी में समा जाती हैं। उद्दम स्थल से नीवी वारी इलाहाबाद 30 किमी तक नदी की सफाई कराई गई है। राजस्व अभिलेखों में नीवी वारी तक यह वरुणा ड्रेन के नाम से दर्ज है। इसके बाद नदी के रुप में यह जंघई इलाहबाद के गांव झारी होते हुए वाराणसी प्रतापगढ़ रेलवे रुट को पार करते हुए जौनपुर की सीमा में पहुंचती हैं। कसेरवा बसेरवा कारो बनकट कुसा होते हुए रामपुर क्षेत्र से होकर वाराणसी जाती है। अतिक्रमण व उपेक्षा के कारण नदी के अस्तित्व पर संकट के बादल छा गए हैं। कभी तटीय गांवों को पेयजल सिंचाई उपलब्ध कराने वाली नदी अब केवल बारिश होने पर ही अस्तित्व में आती है। जहां तक नदी की खुदाई हो पाई है वहां इसका अस्तित्व बचा है। उसके आगे सैकड़ों किमी तक इसका अस्तित्व खतरे में है। नदी में पानी सूख गया है। भारतीय किसान यूनियन के जिलाध्यक्ष राजनाथ यादव का कहना है कि कभी किसानों के सिंचाई का माध्यम रही वरुणा नदी सिकुड़ती जा रही है। सरकार की उपेक्षा के कारण नदी में पानी नहीं है। सरकार को चाहिए की नदी की पूरी सीमा तक गहराई में खुदाई करें जिससे नदी में हमेशा पानी भरा रहे और किसान लाभांवित हो सके। नदी के अगल बगल महो रहे कब्जे पर भी अंकुश लगाया जाए। भू माफिया प्रशासन की सह पर नदियों नालों पर कब्जा जमाए हुए हैं। चम्पापुर निवासी भाजपा नेता आकाश दुबे का कहना है कि नदिया हमारी धरोहर है। इनका संरक्षण होना चाहिए। जो लोग नदियों पर कब्जा कर रहे है उनकी शिकायत कऱें तथा नदी को बचाने के लिए आगे आएं। नदियां लोगों की जिंदगी है। इन्ही के माध्यम से जल संरक्षण किया जा सकता है जो पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है।
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