बरसठी (जौनपुर) : आजादी के इन दीवानों को आज की युवा पीढ़ी भूलती जा रही है। अपने अतीत को जानने की जिज्ञासा ही नहीं रह गई और भौतिक समाज की सुख सुविधा में इस कदर डूब गए हैं कि ऐसे राष्टृवीरों को मन मस्तिस्क से भुला दिया। एक वक्त था जब आजादी के महान योद्धा थे ठाकुर अवधेश सिंह, उनके साहस, शौर्य व वीरता की मिसाल लोग आज भी देते हैं। इन्होंने छापामार रणनीति बनाकर अग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे ।देशभक्ति के जज्बे के चलते ये हर सम्प्रदाय के चहेते थे ।
मन में आजादी का जज्बा लेकर गांधी जी के आह्वान पर 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन से प्रभावित होकर जौनपुर के माटी के लाल एवं भन्नौर ग्राम निवासी ठाकुर रविसरन सिंह के इकलौते पुत्र स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अवधेश सिंह का देशभक्ति का जज्बा हिलोरे मारने लगा। भन्नौर ग्राम के प्राथमिक स्कूल के बच्चों के साथ भन्नौर स्टेशन की रेलवे लाइन को उखाड़ फेंका एवं टेलीफोन के तार को काट कर अंग्रेजी हुकूमत की नाक में दम करते हुए अंग्रेजों की भाषा में एक गिरोह को संचालित करते हुए सरगना के तौर पर ग्यारह साथियों जिसमें प्रमुख रुप से पंडित इन्द्रजीत, पंडित बंसराज, अकबरी मौर्या, नेवाज, पंडित बालकेश्वर के साथ मिलकर रामपुर थाने पर हमला बोलते हुए सिपाही मुखलाल एवं हेड कांस्टेबल अब्दुल जब्बार को बुरी तरह पीटकर अपने साथी को छुड़ा ले गए, हमले में सिपाही मुखलाल की बाद में मौत हो गई ।
जौनपुर से इलाहाबाद चलने वाली ट्रेन से सरकारी खजाने की डाक को अपने उन्ही ग्यारह सदस्यों के साथ बरसठी स्टेशन से लुटकर फरार हो गए। खालिसपुर स्टेशन पर सरकारी खजाने की डाक लूट कांड में भी कुंज बिहार के साथ भी सम्मिलित रहे। इन मामलों के चलते सेशन जज एम एन बनर्जी की कोर्ट 11 सितंबर 1944 को अवधेश सिंह सहित ग्यारह सदस्यों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
देश आजाद होने के बाद ढाई साल पर रिहाई हुई
जब स्वतंत्रता सेनानियों को तत्कालीन सरकार ने पेंशन की घोषणा की तो अवधेश सिंह ने लिखकर दे दिया;देश सेवा की कीमत पैसों से नहीं तौलना चाहता हूँ,।
आज समूचा क्षेत्र ही नहीं बल्कि जनपद में जब भी अमर शहीद क्रान्तिकारियों के कारनामों की चर्चा होती है तो अमर शहीद अवधेश सिंह का भी लोग प्रमुखता से नाम लेते हैं ।
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