#JaunpurLive : मछलीशहर क्षेत्र के करियांव गांव का शहीद स्मारक है उपेक्षा का शिकार

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जौनपुर। ‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा’। शहीद रामदुलारे सिंह की स्मृति में मछलीशहर स्थित उनके गांव में स्मारक तो बना लेकिन वहां मेला लगना तो दूर बरसात के दिनों में पहुंचना तक दुश्वार हो जाता है। शहीदों की कुर्बानी के कसीदे काढ़ने वाले हुक्मरानों को कभी इस बात का एहसास तक नहीं हुआ कि उनके स्मारक के लिए एक सड़क बना दी जाए ताकि उनकी शहादत दिवस पर कीचड़ में सने बगैर लोग उनको याद करने पहुंच सकें। 
नौ अगस्त 1942 में मुंबई में भारत छोड़ो आंदोलन का ऐलान किया गया तो उसकी आंच जौैनपुर में भी पहुंची। देश की आजादी के लिए करो या मरो के जज्बे के साथ अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के जज्बे के साथ निकल पड़े। मछलीशहर मीरगंज क्षेत्र के नौजवानों की टोली 18 अगस्त 1942 को करियांव के रहने वाले रामदुलारे सिंह के नेतृत्व में तहसील पर झंडा फहराने चल पड़ी। इस 21 साल के युवक के पीछे उसके साथी बेनी माधव सिंह, भरत सिंह, दूधनाथ, माता प्रसाद दुबे, शीतला प्रसाद आदि भी हो लिए। वंदे मातरम गाती हुई वीरों की टोली तहसील में घुस गई। वहां अंग्रेजी सैनिक पहले से ही तैयार थे। उन्होंने चेतावनी दी लेकिन जिनके मन में देश प्रेम जज्बा हो वे भाल ऐसी धमकियों से कहां ठिठकते हैं। आजादी के मतवालों ने यूनियन जैक उतार दिया और तिरंगा फहलाने लगे। डिप्टी कलेक्टर अख्तर अली ने गोली चलाने का आदेश दिया। सिपाहियों ने राम दुलारे के सीने में गोली उतार दी। वह गिर पड़े। घायलावस्था में क्रांतिकारी साथी उन्हें लेकर मक्के के खेत में घुस गए। खेतों के रास्ते ही 20 किलोमीटर दूर उनके घर पहुंच गए। वहां स्थानीय वैद्य से उनका उपचार कराया गया लेकिन बचाया न जा सका। 19 अगस्त की रात दो बजे बजे उन्होंने देह त्याग दी। साथियों ने करियांव गांव में ही गुपचुप तरीके से अंतिम संस्कार कर दिया। दाऊदपुर के एडवोकेट राजेंद्र प्रसाद सिंह व मेंताते हैं कि बुजुर्ग बताते थे रामदुलारे सिंह 1932 में 16 साल की उम्र मे घर से भागकर कांग्रेस सेवादल में शामिल हो गए थे। उन्होंने हैदराबाद में सेवादल के अधिवेशन में भाग लिया था। 
करियांव गांव में जहां उनकी चिता जलाई गई थी वहां 1995 में शहीद स्मारक का निर्माण कराया गया है। तत्कालीन जिलाधिकारी प्रदीप कुमार सिंह के प्रस्ताव शासन ने स्मारक बनाने के लिए 16 हजार की राशि मंजूर की थी। बरसठी के तब के विधायक बंश नारायण पटेल पटेल ने भी आर्थिक सहयोग दिया था। शहीद स्मारक बन गया लेकिन उसकी देखरेख का इंतजाम नहीं किया गया। वहां तक पहुंचने रास्ता कच्चा है। बारिश के दिनों कीचड़ के चलते 19 अगस्त को उनकी शहादत दिवस पर पहुंचना दूभर हो जाता है। स्मारक केे आसपास झाड़-झंखाड़ उग गई है। स्मारक की टाइल्स कई जगह उखड़ गई है। उसके चारों तरफ लगी लोहे की जंजीर भी अराजक तत्व उखाड़ ले गए। शहीद रामदुलारे के पौत्र अरविंद प्रताप सिंह कहते हैं कि शहीद स्मारक की देखरेख और वहां तक रास्ते का निर्माण कराने के लिए कई बार मांग की गई लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती।
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