प्रोफेसर सिंह ने राजीव गांधी हत्याकांड से लेकर मधुमिता हत्याकांड जैसे केस तक को डीएनए फिंगर प्रिंट तकनीक से जांच करके सुलझाया था। वे बीएचयू के पूर्व कुलपति थे। 70 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस लेने वाले प्रोफेसर सिंह को पद्मश्री से सम्मानित भी किया था। मगर आपको जानकार हैरानी होगी कि भारत में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के जनक कहे जाने वाले लालजी सिंह की जिंदगी का सफर जौनपुर के एक छोटे से गांव से शुरू हुआ था।
जौनपुर। शीराजे हिन्द की धरती पर जन्म लेने वाले देश के महान वैज्ञानिक, फादर ऑफ इंडियन डीएनए फिंगरप्रिंटिंग कहे जाने वाले प्रोफेसर लालजी सिंह की आज दूसरी पुण्यतिथि है। वर्ष 2017 में देश ने एक महान वैज्ञानिक खो दिया था। प्रोफेसर सिंह ने राजीव गांधी हत्याकांड से लेकर मधुमिता हत्याकांड जैसे केस तक को डीएनए फिंगर प्रिंट तकनीक से जांच करके सुलझाया था। वे बीएचयू के पूर्व कुलपति थे। 70 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस लेने वाले प्रोफेसर सिंह को पद्मश्री से सम्मानित भी किया था। मगर आपको जानकार हैरानी होगी कि भारत में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के जनक कहे जाने वाले लालजी सिंह की जिंदगी का सफर जौनपुर के एक छोटे से गांव से शुरू हुआ था।
जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें
डॉ. लालजी को उनके काम के लिए जाना जाता है। उनका जन्म 5 जुलाई 1947 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में एक छोटे से गांव कलवारी में हुआ था। उनके पिता एक मामूली किसान थे। लालजी सिंह ने BHU से एमएससी करने के बाद कोशिका आनुवंशिकी में पीएचडी की। उन्हें बीएचयू समेत 6 विश्वविद्यालयों ने डीएससी की उपाधि भी दी थी। प्रोफसर सिंह ने राजीव गांधी मर्डर केस, नैना साहनी मर्डर, स्वामी श्रद्धानंद, सीएम बेअंत सिंह, मधुमिता हत्याकांड और मंटू हत्याकांड जैसे केस को डीएनए फिंगर प्रिंट तकनीक से जांच करके सुलझाया था।
कई संस्थानों और लैब की शुरुआत की
डॉ. लालजी ने भारत में कई संस्थानों और लैब की शुरुआत की। वे हैदराबाद के कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (Centre for Cellular and Molecular Biology) के फाउंडर भी थे। उन्होंने 1995 में डीएनए फिंगर प्रिंटिंग और डायग्नोस्टिक्स सेंटर शुरू किया। 2004 में जीओम फाउंडेशन शुरू किया। इसका उद्देश्य था कि भारत के लोगों में जेनेटिक बीमारियों को खोजकर उनका इलाज किया जाए। इस फाउंडेशन की शुरुआत मुख्यरूप से ग्रामीण इलाकों और पिछड़े इलाकों के लोगों के लिए की गई।
कई बड़े पद संभाले
डॉ. लालजी अगस्त 2011 से अगस्त 2014 तक बीएचयू के 25वें वीसी के रूप में कार्यरत रहे। खबरों की मानें, तो बीएचयू का वीसी रहने के दौरान उन्होंने सिर्फ 1 रुपये वेतन लिया। वे अगस्त 2011 से अगस्त 2014 तक IIT BHU बोर्ड के चेयरमैन भी रहे। मई 1998 से जुलाई 2009 तक वे Centre for Cellular and Molecular Biology (CCMB) के निदेशक और 1995 से 1999 तक Centre for DNA Fingerprinting and Diagnostics (CDFD) के ओएसडी रहे। उन्होंने आणविक आधार पर लिंग परीक्षण, वन्य जीव संरक्षण, फोरेंसिक और मानव प्रवास पर काफी काम किया।
वर्ष 2017 में एयरपोर्ट पर दिल में उठा दर्द
बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल के सीएमएस डॉ. ओपी उपाध्याय ने बताया कि वे (लालजी) अपने जन्मस्थान जौनपुर के कलवारी गांव गए थे। वहां से दिल्ली जा रहे थे। वाराणसी के एलबीएस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उन्हें दिल में दर्द उठा। उन्हें बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर लाया गया, लेकिन बचाया नहीं जा सका। संभवत: लालजी को दिल का दौरा पड़ा था।