Adsense

Mungra Badshahpur : आस्था और विश्वास का अनुपम केंद्र है श्री महाकाली मंदिर शक्तिपीठ


वर्षभर होती है यहां पूजा-अर्चना, नगर तथा क्षेत्रवासियों को है इन पर अनूठा विश्वास
पुरातात्विक धरोहर के रुप में भी है इसकी पहचान, दोनों नवरात्रों मं रहता है मेले जैसा दृश्य
महारानी बलराजि कुंवरि ने स्वप्न में मां काली का दर्शन मिलने पर कराया था मंदिर निर्माण
इस मंदिर से जुड़ी है, कई राजे एवं रजवाड़ों की स्मृतियां
क्षेत्रीय नागरिकों, शासन-प्रशासन सहित पुरातत्व विभाग की उपेक्षा का दंश झेल रहा है मंदिर





दीपक शुक्ला
मुंगराबादशाहपुर (Mungra Badshahpur), जौनपुर। नगर के मध्य स्थित नगर तथा क्षेत्रवासियों के आस्था तथा विश्वास का केंद्र श्री महाकाली जी मंदिर भक्तों के लिए मनोवांछित फलदायी तीर्थस्थल बना हुआ है जहां मां काली की कृपा पाने के लिए सैकड़ों भक्त श्रद्धा भक्ति के साथ प्रतिदिन यहां आकर दर्शन पूजन करते है तथा अपने व अपने परिवार की खुशहाली के लिए मां से प्रार्थना करते हुए मां के चरणों में शीश झुकाते है। यह तीर्थ पूर्वांचल का प्रसिद्ध सिद्धपीठ, आस्था विश्वास का धाम एवं ऐतिहासिक शक्ति स्थल है। पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह धरोहर चार जनपदों वाराणसी, संत रविदास नगर भदोही, जौनपुर, प्रतापगढ़ एवं इलाहाबाद की सीमा पर स्थित है।





Ma kali mandir munga badshahpur




यह तीर्थ इलाहाबाद से उत्तर 50 किमी, वाराणसी पश्चिम 110 किमी, प्रतापगढ़ से पूरब 45 किमी तथा बदलापुर से दक्षिण लगभग 43 किमी पर अवस्थित है। इलाहाबाद से जौनपुर सड़क मार्ग पर इलाहाबाद से 50 किमी दूरी पर मुंगराबादशाहपुर नगर पालिका परिषद स्थित है। मुख्य चौराहे से नगर में जाने वाली मुख्य सड़क प्रतापगढ़, लखनऊ रेल खण्ड पर बादशाहपुर रेलवे स्टेशन से लगभग एक किमी अंदर बाजार में है। श्री महाकाली जी मंदिर सेवा समिति के वरिष्ठ सदस्य इस पुरातात्विक मंदिर के शोधकर्ता विश्व हिन्दू परिषद के मंत्री कृष्ण गोपाल जायसवाल ने बताया कि जौनपुर गजेटियर एवं शर्की राज्य जौनपुर के इतिहास से यह स्पष्ट होता है कि प्रतापगढ़ जनपद में बच्छगोती ठाकुरों की बड़ी भू सम्पत्ति रायपुर बछोर के नाम से स्थापित थी। रायपुर बछोर के राजा पृथ्वीपाल सिंह की सन् 1866 ई. में मृत्यु हो गयी थी। उनके पुत्रों ने आपस में भू सम्पत्ति को बांट लिया था। सबसे छोटे पुत्र विशेषर सिंह के अधिकार में जो भूमि आयी उसमें परगना गड़वारा को जखनियां तालुका भी था। विशेषर सिंह का भी सन् 1898 में देहांत हो गया। इनकी विधवा ठकुराइन बलराजि कुंवरि इनकी समस्त भू सम्पत्ति की अधिकारी हुई जो अपनी जन्मभूमि दाउदपुर को छोड़कर मुंगराबादशाहपुर में रहने लगी।





उन्होंने इस नूतन निवास पर एक विराट भवन बनवाया इसी के साथ देवालय भी निर्मित कराया। श्री महाकाली जी मंदिर का स्थापत्य कला दर्शनीय है। पचासों फिट ऊंचा फाटक जिसमें लोहे का दरवाजा लगा है। फाटक के ऊपर दो विशाल मछलियां बनी हुई है। मछलियों की आंखों पर हीरे की तरह प्रतीत होता हुआ कोई चमकीला धातु लगा हुआ है। दोनों मछलियों के बीच में चमकीला अष्टदल कमल बना हुआ है जो शुभ का सूचक है और स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। फाटक के अंदर प्रवेश करने पर पाँच शिखरों वाले भव्य मंदिर का दर्शन होता है। धातु से जय मां काली लिखा हुआ वाक्य सामने दृष्टिगोचर होता है। स्थापत्य कला एवं वास्तु की दृष्टि से ब्राहृज्ञान पर श्रीमहाकाली की दिव्य तेजस्वी मूर्ति विराजमान है। गर्भगृह के चारों दीवारों पर भगवान के अवतारों यथा नरसिंह, कूर्म, मत्स्य, कृष्ण, परशुराम, वामन, वाराह, परनारायण, बलराम आदि अवतारों के साथ-साथ पुराणों पर आधारित प्रसंगों की मूर्तियां उत्कीर्ण है। सामने की दीवार पर रामभक्त हनुमान की मूर्ति एवं विघ्न विनाशक गणेश जी मूर्ति विराजमान है। आग्नेय कोण में स्थित भगवान अवघड़दानी आशुतोष शिवशंकर विराजमान है। इसी के साथ भगवान पशुपतिनाथ, नंदी, संती, अन्नपूर्णा देवी शिव जी के वामांग में बैठी माता पार्वती, शिवलिंग एवं नर्वदेश्वर शिवपिण्डियां विराजमान है। ईशान कोण में स्थित मंदिर भगवान श्रीराम को समर्पित है। इसमें प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण, माता सीता की मनोहारी मूर्तियां, दो द्वारपाल व दक्षिणमुखी श्रीराम भक्त हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है। वायव्य कोण में स्थित मंदिर भगवान भाष्कर सूर्य को समर्पित है। इसमें सातघोड़ों से सुसज्जित रथ पर भगवान भुवन भाष्कर विराजमान है। पास में राधाकृष्ण की मूर्ति भी विराजमान है। नैऋृत्यकोण में स्थित मंदिर विघ्नहर्ता गणेश जी को समर्पित है। इसमें पास में ही मां शीतला देवी जी की मूर्ति स्थापित है। इस प्रकार पाँच भव्य शिखरों से युक्त यह मंदिर पंचदेव को समर्पित है। शैव, वैष्णव, शौर, शक्ति, गणपत्य, पंचदेव उपासना का अनूठा संगम यह अद्भुत तीर्थ है।
वासंतिक नवरात्र एवं शारदीय नवरात्र में यहां का आकर्षण अत्याधिक बढ़ जाता है। दोनों ही नवरात्रों में यहां पर मंदिर की भव्य सजावट, मां का भव्य श्रृंगार और नवरात्र महोत्सव के अंतर्गत दिव्य सत्संग का आयोजन होता है। इसमें राम चरित मानस, वाल्मीकि रामायण, देवी भागवत, श्रीशिव महापुराण, योग वशिष्ठ, श्रीमद्भागवत आदि ग्रंथों का विद्वान आचार्यों द्वारा प्रवचन होता है। इस मंदिर पर श्रीराम नवमी पर श्रीराम जन्म एवं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी समारोहपूर्वक मनायी जाती है जिसमें नगर तथा ग्रामीण क्षेत्रों के बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण भाग लेते हैं। इस अवसर पर परिसर में स्थित पाँचों मंदिरों की भव्य सजावट एवं भव्य श्रृंगार होता है। भगवान श्री कृष्ण की छट्ठी एवं श्री कृष्ण की बरही का आयोजन भी बड़े धूमधाम से किया जाता है। वर्तमान में इस मंदिर के पुरारी संदीप महाराज जी है जो नैष्टिक ब्राहृचारी है और श्रद्धा से मां काली की सेवा में लगे हुए है।





यह मंदिर राज परिवार से जुड़ा हुआ मंदिर है। कभी इस मंदिर की व्यवस्था रजवाड़ों द्वारा की जाती थी। पूर्वज बताते हैं कि लगभग 150 वर्षों पूर्व यह मंदिर दाउदपुर के महाराज राय विशेषर वक्त सिंह ने बनवाया था। मंदिर के पास ही राजमहल बना था जो अब खंडहर में परिवर्तित हो चुका है। राजमहल से मंदिर तक आने के लिए पुल बना था। पुल के अवशेष स्तम्भ अभी कुछ वर्षों पूर्व तक विद्यमान थे। महाराज राय विशेषरवक्त सिंह हाथी के ऊपर रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठकर निकलते थे। यहां पर सात हाथियां और दर्जनों घोड़े रहा करते थे। इनकी दूसरी पत्नी विलासी कुंवरि थी। इनकी एक मात्र पुत्री जन कुंवरिथी। जिनका विवाह देवरिया के राजा कौशल किशोर से हुआ था। उस समय राजा अवधेश प्रताप मल्ल मझौली के राजा थे। राय विशेषर वक्त सिंह के लड़के नहीं थे। उन्होंने अपने रिश्तेदार वीरापुर स्टेट के कृष्णपाल सिंह हौर हरीपुर स्टेट के विश्वनाथ प्रताप सिंह को गोद ले लिया था जो उस समय बहुत कम उम्र के थे। वीरापुर स्टेट के राजा कृष्ण पाल सिंह के लड़के बड़ीपाल सिंह थे जिनकी पत्नी का नाम विक्टोरिया था। यह त्रिपौलियां स्टेट सीतापुर की लड़की थी। रानी विक्टोरिया की एक बहन नेपाल नरेश महाराज महेंद्र विक्रम शाह से ब्याही थी और एक बहन काशीपुर स्टेट में ब्याही थी। इनके लड़के केसी सिंह पूर्व विधायक रहे और विगत वर्षों अपने सहयोगियों के साथ मंदिर में दर्शनार्थ आये भी थे। बताया जाता है कि रानी बलराजि कुंवरि को देवी का स्वप्न हुआ था और राज दरबार में पधारे हिमालय के एक ऋषि की प्रेरणा से भगवाती पराम्बा श्री महाकाली जी की स्थापना का विचार इनके ह्मदय में प्रकट हुआ था। मंदिर स्थापना के समय दक्षिण भारत से वैदिक विद्वान तथा काशी जी व विंध्याचल धाम से प्रसिद्ध वैदिक विद्वान यहां आये थे।





पूर्वज बताते हैं कि मूर्ति स्थापना के समय मूर्ति में एक दिव्य तेज प्रकट हुआ था और एक बकरे की बलि भी दी गयी थी। फिर उसके पश्चात् यहां कोई भी बलि नहीं दी गयी। मूर्ति में श्री महाकाली जी भगवान शंकर को एक पैर से दबाई हैं और विष्मय में उनकी जिह्वा बाहर निकली है। ऐसा प्रतीत होता है कि रणांगण में मां काली का चरण भूलवश भगवान शंकर के ऊपर पड़ गया था और विष्मय वंश मां काली की जीभी बाहर निकल आयी हो। बताया जाता है कि मंदिर में मां काली जी की मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा के समय मां काली के घुघरु की आवाज भी आती थी। एम समय की बात है कि जब राजा साहब उच्च न्यायालय में चल रहे किसी मुकदमे में हार गये तो मंदिर की अखंड ज्योति अपने आप बुझ गयी और जब ज्योति पुन: जलाकर पूजन अर्चन किया गया तो मुकदमे में विजय मिली। इस मंदिर की शालिग्राम की मूर्ति और दक्षिणावर्त शंख बहुत ही प्रसिद्ध है। मुक्तिनाथ दामोदर कुण्ड यात्रा एवं दामोदर हिमालय जहां शालिग्राम की मूर्ति प्राप्त होती है की विशद यात्रा करने वाले भक्त कृष्ण गोपाल जी ने बताया कि ऐसी जीवंत शालिग्राम की मूर्ति अन्यत्र किसी भी मंदिर में देखने को नहीं मिलती। इस प्रकार की एक मूर्ति उनके पास भी है जो उन्हें गण्डक नदी से प्राप्त हुई थी। पूर्वजों ने बताया कि एक बार रानी विक्टोरियां की छोटी सास शालिग्राम की मूर्ति व दक्षिणावर्त शंख लेकर प्रयागराज चली गयी थी। पूजा करते समय वह जलकर मर गयी तो रानी साहब ने भगवान शालिग्राम की मूर्ति मंदिर में वापस पहुंचा दिया लेकिन दक्षिणावर्त शंख का अब तक कोई पता नहीं चल सका।





मां काली जी का भव्य भण्डारा एवं सत्संग भवन मंदिर के बगल में बना है और पीछे भव्य फुलवारी थी। इस मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित जीव बोध महराज थे। उसके बाद उनके सुपुत्र पंडित रविदत्त महाराज जी जीवन पर्यंत मां काली जी की सेवा एवं पूजन किया। इस मंदिर के साथ रजवाड़ा द्वारा लौह और कोदहूं ग्राम लगाया गया था जिसकी आय मंदिर को प्राप्त होती थी। डा. गौरी शंकर सिंह मंदिर की देख रेख व मालगुजारी वसूल करने के लिए नियुक्त थे। क्षेत्र के प्रख्यात ज्योर्तिविद पं. रामराज शुक्ल ने बताया कि उन विद्वानों में एक पंडित बहोसगत ने भविष्यवाणी किया था कि आज यहां दुन्दुभि, नगाड़ा बज रहा है। इतना सारा वैभव है किन्तु जब काल के गाल में यह रजवाड़ा और स्टेट समाप्त हो जायेगा तो हे बादशाहपुर वालों तुम इसकी देखभाल करना। श्री महाकाली जी का भव्य मंदिर काल के प्रवाह में उपेक्षित होकर अपने उद्धार के लिए नगर व क्षेत्रवासियों तथा शासन-प्रशासन की बाट जोह रहा है। ऐसी मान्यता है कि जो भी मां का भक्त मंदिर में श्रद्धा भाव से आता है तो मां उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देती है।


Post a Comment

0 Comments