कृष्ण, राधा के विरह में | #NayaSaberaNetwork



जब  मैं आता  बरसाने में 
               दिखती ना  वृषभानु लली
चहुँ दिशि देख के हार थका 
              मिलती ना वो व्रज की कली 
राधा के बिन लगता है सूना
               मधुवन अरू  बरसाने गली
मैं तो राधा  विरह में पागल
              कहाँ  गई  मुझे  छोड़ छली।। 

कोई  तो मुझे  बता  दे 
                    मेरी राधा का अद्य पता
वृषभानु भवन छिपी है वो
                  या कुन्जन की ओट लता
ढूंढ ढूंढ कर हार थका मैं
                  विरह व्यथा सही ना जाय
क्या मेरे दिल की हालत है
                  शब्दों में वह कही न जाय।।

तुमसे गुजारिश मेरी राधा
                           आजा तूं वृन्दावन में 
तेरे बिन कुछ नीक न लागे
                     तूं   ही बसती  मेरे मन में
तूं  कह दे तो मुरली छोडू
                       जिसको तू सौतन समझे
अब तो विरह सही ना जाय
                  वियोग की आग लगी तन में।।

माता जसुमति अरु नन्द बाबा
                   समझा के कांधा को हार थके
ग्वाल बाल अरू मित्र सुदामा 
                 भी  कांधा  की जिदना टार सके
सखियां समझा रहीं राधा को
                      अब तूं ही अपनी जिद छोड
तेरे बिन कोई ना जग में 
                     जो कान्हा  पे डोरे डाल सके। 

महेन्द्र सिंह  "राज"
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