नया सबेरा नेटवर्क
हो रही रोज झूठ की बारिश,
साँच की आँच में जलने दे।
आया वक़्त गुजर जाएगा,
ईमान- धरम पे तो चलने दे।
अज़नवी के जैसे मिलते लोग,
पुराने दिनों जैसे रहने दे।
रात की मुट्ठी में सूरज है क़ैद,
नंगे पांव तो मुझे चलने दे।
हुआ बेदखल जब चाँद गगन से,
जुगुनुओं को तो चमकने दे।
होली की आँच से पकाई रोटी,
तस्वीर देश की बदलने दे।
देर से सही बादल छाया तो,
जब तक चाहे उसे बरसने दे।
हवाओं का असर होता बहुत,
जल-परियों से उसको मिलने दे।
मेरे नसीब में वो चाँद नहीं,
दूर से सही उसे देखने दे।
पाता कहाँ है, हर कोई चाँद,
मेरे दिल को थोड़ा बहलने दे।
रहता हूँ मस्त मैं अपनी धुन में,
कहता कोई पागल, कहने दे।
मत पूछ तबीयत कैसी मेरी,
बस मुझको जिन्दा रहने दे।
मत खींच लकीर इन सांसों पे,
ज्ञान की ये गंगा बहने दे।
झलक उसकी दिखती हर फूल में,
जमीं पे पांव न उसका पड़ने दे।
हँसी के फूल से बनाई है माला,
दूर तक महकती है, महकने दे।
लिखती है लहरों पे नाम मेरा,
अंग- अंग अक्षर का सजने दे।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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