अमृत-सा जल लाकर बादल,
पहले नभ में छाते हैं।
उमड़-घुमड़कर करते बारिश,
नदियों से प्रलय मचाते हैं।
हरी -भरी धरती हो जाती,
वो फूला नहीं समाते हैं।
सज जाती खेतों में फसलें,
ऐसा रंग चढ़ाते हैं।
पड़ जाते डालों पे झूले,
दादुर शोर मचाते हैं।
पानी की लहरों पे बच्चे,
कागज की नाव चलाते हैं।
कभी-कभी बादल भी नभ में,
खुद पक्षी बन जाते हैं।
हिरन,बाघ, हाथी बनकर,
बच्चों का मन वो लुभाते हैं।
वन-उपवन के होंठों पे तब,
हँसी की रेखा खिंचती है।
कुदरत की बाँहों में देखो,
दुनिया कितनी खिलती है।
पत्थर, पहाड़, पठार सभी,
पानी की संतानें हैं।
पानी देखो!कहीं न बनता,
हम कितने अनजाने हैं।
सब ऋतुओं की रानी बरखा,
जीवन नया ये बोती है।
जन-जन की धड़कन है यही,
ना समझो तो भी मोती है।
जल संरक्षण करके ही हम,
जल स्तर को बढ़ायेंगे।
पर्यावरण की रक्षा करके,
वसुधा को महकायेंगे।
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